रायगढ़। सुहागिन महिलाओं ने सोमवार को वट सावित्री की पूजा-अर्चना कर पति की लंबी उम्र और सुख शांति की कामना की। इस दौरान वट वृक्ष को मौसमी फल अर्पित कर 108 परिक्रमा के साथ कच्चा सूत्र बांधने और पंखा से ठंडक पहुंचाने के बाद महिलाओं ने आस्था के साथ वट सावित्री कथा भी सुनी।
उल्लेखनीय है कि हिन्दू धर्म में वट सावित्री व्रत का एक अलग ही महत्व हैं। इसे ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को वट पूजा किया जाता है। इस दौरान सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती हैं। कहा जाता है कि इस दिन सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लेकर आईं थीं। जिसके बाद उन्हें सती सावित्री कहा जाने लगा। इस पर्व को लेकर शहर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में सुबह से उल्ल्लास के साथ महिलाओं को वट वृक्ष की पूजा-अर्चना करते देखा गया। वहीं पंडितों ने बताया कि ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि पर वट सावित्री पूजन करने की परंपरा युगों से चली आ रही है। ऐसे में इस बार अमावस्या तिथि 26 मई को था। ऐसे में सुहागिन महिलाओं ने सोमवार को निर्जला व्रत रखकर कर अपने पति की लंबी आयु के लिए वट वृक्ष की पूजा किया। वहीं शहर में गौरीशंकर मंदिर, बुजी भवन, निकले महादेव मंदिर, सहित अन्य दर्जनो मंदिर व गली-मोहल्लों में महिलाओं ने वट सावित्री का निर्जला व्रत कर वट वृक्ष में रोली बांधकर विधि-विधान से पूजा-अर्चन कर यमराज से पति की लंबी आयु की मांग की है। वट सावित्री व्रत को लेकर सुहागिन महिलाओं में खासा उत्साह रहा। इस दौरान महिलाओं ने पूरे दिन वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूजा-अर्चना किया। वट सावित्री पूजा के बाद सुहागिनो महिलाओं ने सुहाग के रक्षा के लिए सुहाग का सामान आदान प्रदान करते हुए उज्वल भविष्य व परिवार में सुख शांति के लिए कामना की। इसके आलावा महिलाएं अपनी सुहाग की दीर्धायु हेतु निर्जला व्रत रखकर वट सावित्री की पूजा कर सती सावित्री से सदा सुहागन होने का आशीर्वाद मांगा। साथ ही गौरीशंकर मंदिर, निकले महादेव मंदिर सहित अन्य मंदिरों में पंडितों द्वारा कथा का भी आयोजन किया गया था, जिससे महिलांए वृद्ध की पूजा करने के बाद कथा का श्रवण किया।
बरगद के पेड़ का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बरगद के पेड़ में हिंदू पौराणिक कथाओं के त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश विद्यमान हैं। पेड़ की जड़ें ब्रह्मा का प्रतिनिधित्व करती हैं। वट वृक्ष का तना विष्णु का प्रतिनिधित्व करता है और भगवान शिव बरगद के पेड़ के ऊपरी हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र पेड़ के नीचे पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जिस तरह सावित्री ने अपने समर्पण से अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस लाई थीं, उसी तरह इस शुभ व्रत को रखने वाली विवाहित महिलाओं को एक सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है, इसी मान्यता को लेकर हर साल जेष्ठ कृष्णपक्ष के अमावश्या को वट पूजा की जाती है।
क्या है मान्यता
इस संबंध में मान्यता है कि वट (बरगद) वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने मृत पति के शरीर को रखकर यमराज के पीछे-पीछे चली गई थीं। सावित्री के संकल्प से प्रसन्न होकर यमराज ने वरदान दिया जिससे सावित्री के पति सत्यवान को पुर्नजीवन मिला। इसी मान्यता के चलते सुहागिन महिलाएं अखंड सुहाग की कामना के लिए ज्येष्ठ अमावश्या के दिन वट वृक्ष और यमराज की पूजा करती हैं।
पति की दिर्घायु के लिए सुहागिनों ने रखा वट सावित्री व्रत
सुबह से ही मंदिरों में चलता रहा पूजा-पाठ का दौर, वट वृक्ष में कच्चा सूत्र बांधकर लंबी उम्र की किया कामना
