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NavinKadam > रायगढ़ > स्वर्गस्थ हरिराम अग्रवाल को शब्दांजलि… चले गए वे… उस अनंत की चरण-शरण में!
रायगढ़

स्वर्गस्थ हरिराम अग्रवाल को शब्दांजलि… चले गए वे… उस अनंत की चरण-शरण में!

lochan Gupta
Last updated: December 18, 2024 11:32 pm
By lochan Gupta December 18, 2024
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7 Min Read

सरलता, निश्छलता और गहन वात्सल्य के संगमित व्यक्तित्व- हरिराम अग्रवाल सदा के लिए, अनंत पथ पर, प्रभु के चरण-शरण की ओर चले गये। 7 दिसंबर की रात, भोजन उपरांत वे शयन के लिए गए थे। कुछ समय जब अंकुर अपने बाबा को देखने गये, उन्हें छुआ तब तक वे अपनी अंतिम यात्रा की ओर प्रस्थित हो चुके थे। शास्त्र कहते हैं या देवी सर्व भुतेषु निद्रा रूपेण संस्थिता, नम:तस्यै: नम:तस्यै: नमो नम:! निद्रा रूपी देवी के आंगन में उनकी आत्मा का प्रयाण हो चुका था। एक सात्विक जीवन की यह दिव्य यात्रा थी।
8 नवम्बर 1934 को भिवानी के डालूराम जी के घर जन्मे, हरिराम जी का परिवार सन् 1940 के आसपास रायगढ़ आ गया था। स्व. डालूराम जी की बहन का विवाह, रायगढ़ के भामाशाह-दानवीर सेठ किरोड़ीमल से हुआ था। युवा हरिराम जी की जीवन संगिनी बनी कोलकाता के प्रख्यात हाड़ा परिवार के पद्मविभूषण श्रीनिवास हाड़ा की बहन पदमा देवी। श्रीनिवास हाड़ा इथोपिया के भारत में कौंसिल जनरल (व्यावसायिक राजदूत) थे और छोटे भाई पदमश्री गोविन्दराम जी लेबनान के भारत स्थित कौंसिल जनरल थे। स्व. डालूराम जी के जीवन- बाग में नौ बेटे और दो बेटियों के वात्सल्य-पुष्प खिले थे! वंश के सृजन-क्रम में, हरिराम जी की जीवन-बगिया को, जगदीश, मंजु, विजय, अशोक, अजय, अनिता नामक वात्सल्य-पुष्प महका गये।
समय का पाखी पंख फैला कर उड़ता गया। जीवन की नदी सुख-दुख के दो पाटों से होकर बहती है। इस बीच एक अप्रत्याशित और विलक्षण घटना ने हरिराम जी सहित पूरे परिवार को स्तब्ध कर दिया था। वह 2 मार्च 2011 की महाशिवरात्रि की सुबह थी। जगदीश भाई बताते हैं कि माँ पदमा देवी, अपनी बहुओं के साथ गौरीशंकर मंदिर गईं थीं। पूजा करती हुईं माँ ने शिवलिंग को दोनों हाथों से समेटा और अपना मस्तक टिकाया…… और कुछ क्षणों के पश्चात इसी रूप में वे शिवलोक की प्रस्थान कर गईं। यह अनुपम और दिव्य भक्ति का दृश्य था जिसकी चर्चा उन दिनों पूरे रायगढ़ में होती रही। क्योंकि यह एक मृत्यु नहीं थी बल्कि माँ पदमा देवी की शिवलोक की अमृत-यात्रा थी। कुछ इसी तरह उनके पति हरिराम जी का भी दिव्य प्रयाण हुआ। दुर्गा सप्तशती में उल्लेखित ‘या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता’ के साथ, निद्रा अवस्था मे उनका अनंत गमन हुआ।
कीर्तिशेष हरिराम जी के अंतस में स्नेह का मीठा सागर हमेशा प्रवाहमान रहा। वे अपनों से ज्यादा, दूसरों को-परायों को स्नेह बांटते रहे। अपने कर्मचारी-सहयोगियों के पारिवारिक सुख-दुख में आत्मीयता से शामिल होते और वांछित सहयोग करते। 1957 के चुनाव में, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (झोपड़ीछाप) से प्रत्याशी जननायक रामकुमार अग्रवाल जी के चुनाव- अभियान में सक्रिय-समर्पित सहयोगी रहे। अजय बताते हैं कि रायगढ़ में 24 घण्टे के अखण्ड पाठ का शुभारम्भ बाबू जी ने ही किया था। उनकी बड़ी और विदुषी बिटिया मंजु कहती हैं कि बाबू जी सचमुच अजातशत्रु थे। रामायण उनका प्रिय ग्रंथ था और नवरात्रि अत्यन्त प्रिय पर्व! उनका गला गर्व से भर जाता है और वे कहती हैं कि पूरे रायगढ़ में उनका किसी से द्वेष, विवाद या विरोध नहीं था। पिता को याद करती हूई उनकी आँखें भीगने लगती और इन यादों में दिवंगत माँ भी शामिल हो जाती हैं। बेटी हैं न! माँ तो ताउम्र धडक़ती ही रहती हैं हर बेटी के भीतर! मंजु बेटी दादूद्वारा में गुरूवाणी का पाठ करतीं। वेदांत चर्चा में शामिल होतीं। हनुमान मंदिर (थाना रोड) के सीताराम बाबा (पूज्यपाद नरहरि दास जी) प्रख्यात संत अवधेशानन्द जी, रमेशभाई ओझा जी सहित भूरा महाराज जी का आशीष उन्हें मिला।
अपने यशस्वी विधायक बेटे विजय से, पिता हरिराम जी बहुत हर्षित एवं गर्वित थे। हर्ष तो स्वाभाविक था और गर्व इस लिए की उनके विधायक बेटे ने अच्छा काम किया है। क्योंकि रायगढ़वासियों के सुख-दुख और संघर्षों में इस बेटे की सार्थक और रिजल्ट ओरियेन्टेड सहभागिता होती रही है। जगदीश भाई, अशोक और अजय बतातें हैं कि बाबू जी सिंपल फिलासफी यह थी कि जिंदगी को दिनों से नहीं नापना चाहिए। उनके अनुसार खुशियों के पलों से नापी जाती है जिंदगी। कितनी खुशी आपको मिली और आपने कितनी खुशियों बाँटी! जिंदगी को नापने का यही स्केल होता है।
विजय भाई, मंजु एवं अनिता बहन, अत्यन्त भावना भरे स्वर में समवेत रूप से उल्लेख करते हैं कि बनौरा स्थित ऋषि-व्यक्तित्व पूज्य प्रियदर्शी बाबाश्री की उदार कृपा तथा अनंत स्नेह बाबू जी सहित, हमारे पूरे अग्रवाल परिवार को मिला है। एक माह पहले उनके आशीष-चरणों से हमारे घर निहाल हुआ था। उन दिनों बाबू जी विकल-बेचैन मन:स्थिति मे थे। पूज्य बाबाश्री ने उनकी ओर ध्यान से देखा। आई-कान्टेक्ट हुआ और फिर बाबू जी बिलकुल पहले जैसे सहज-नार्मल हो गये। भीतर का तनाव खत्म हो गया था। अब उनका कंठ, आदिशक्ति माँ और पतित पावनी ‘गंगा का उच्चारण करता था। एक अपूर्व शीतलता का अनुभावन उन्हें होने लगा था। यह प्रसंग साक्षी है कि ईश्वरीय चेतना से सम्पृक्त एक ऋषि-व्यक्तित्व के आशीष का अवदान, कितना महनीय होता है। विजय भाई, बाबू जी के अनेक संवेदना भरे प्रसंगों का उल्लेख करते है। वें कहते हैं कि उनका समावेशी नेचर था। सरस, निश्छल और संवेदना से भरा उनका हृदय था। उनका साधारण होना उनकी सबसे असाधारण विशेषता थी। हमारा यह सौभाग्य ही है कि परमात्मा की श्रेष्ठ एवं उदार रचना-पूज्य बाबू जी का आशीष हम सब पर बना रहा-सजा रहा। अब उस लोक से भी, वही आशीष सावनी-बूंदों की मानिन्द हमेशा झरता रहेगा।
दरअसल पिता की कभी मृत्यु नहीं होती। वे अपनी संतानों की साँसों में सदा धडक़ते रहते हैं। इसलिए जब भी इस विशाल अग्रवाल परिवार में, बेटी का डोली उठेगी…… जब भी सुहाग-गौरव से, पायल छनकाती नववधु का मंगल आगमन होगा…… और जब भी परिवार मे नवजात की किलकारी गूंजेगी-तब दूर अनंत से, अदृश्य हाथों से दिव्यात्मा हरिराम जी का तरल आशीष झरता रहेंगा……बरसता रहेगा। वे हरि भी थे और राम भी। अंतत: हरिराम जी अपने उसी परम-तत्व में समाहित हो गये। पुण्यात्मा हरिराम जी को मेरे अशेष नमन!
प्रो. अम्बिका वर्मा
सिटी कोतवाली के समक्ष, रायगढ़
मो. नं. 8839362121

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