रायगढ़। बीते 3 चुनाव में भाजपा के वोटर बढ़ रहे तो कांग्रेस के घट रहेइस बार अगर भाजपा में फूट न पड़े तो रायगढ़ विधानसभा सीट पर वह जीत सकती है। आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि इस सीट पर भाजपा लगातार अपने वोट बैंक में इजाफा कर रही है। फिलवक्त रायगढ़ की सीट कांग्रेस की है बीते चुनाव में भाजपा में पड़ी फूट का ही फायदा कांग्रेस को मिला। भाजपा और भाजपा से बागी प्रत्याशी को करीब 97,000 वोट मिले और 69 हजार वोट पाकर कांग्रेस ने यहां से जीत दर्ज की। इस जीत में कई सारी जुगाली हैं पर जैसे हम 2019 लोकसभा चुनाव में रायगढ़ विधानसभा के वोटिंग पर नजऱ डालें तो मत प्रतिशत और वोटर्स विधानसभा के जैसे ही रहे। यानी भाजपा के पक्ष में 1,19,970 और कांग्रेस को 65, 338 वोट मिले अर्थात जो 6 महीने पहले फूट में बिछड़े थे वो लोकसभा में एकजुट हो गए। इसके बाद अब यह चुनाव होने जा रहा है। राजनीतिक स्तर पर फिलहाल न तो कोई लहर है और न ही कोई बड़ा मुद्दा, स्तिथि जस की तस है। इस लिहाज से भाजपा का पलड़ा भारी है वो अभी की हालत में रायगढ़ विधानसभा सीट पर कम-से-कम 35 हज़ार वोटों से आगे है। अगर इस बार भी भाजपा में फूट पड़ी तो कांग्रेस को कोई जीतने से रोक नहीं सकता। कांग्रेस को अपने पाले में भाजपा के कम-से-कम 15 हज़ार वोटर्स को लाना होगा तब जाकर मुकाबला बराबर का होगा। क्योंकि दोनों ही पार्टियों के अपने कोर वोटर हैं जिन्हें प्रत्याशी से नहीं पार्टी से मतलब होता है। अब जो नतीजे तय करते हैं वो हैं फ्लोटिंग वोटर्स। इनमें नए मतदाता प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इन्हीं मतदातों को लुभाने या इनको साधने दोनों ही पार्टियां झूझती हैं। भाजपा संगठन फिलहाल यहाँ भी आगे निकल गया है। प्रदेश भाजपा के चुनाव प्रभारी ओम माथुर ने बीते महीने संगठन की बैठक में नए मतदाता को पार्टी से जोडऩे और नवाचार को लेकर लंबी क्लास लगाई थी।
2013 और 2018 के विधानसभा चुनाव मतदान पर नजऱ डालें तो शहर में 2013 में 1,02,251 वोटर्स में से 68,358 ने वोट डाला (67प्रश. ) जिसमें से कांग्रेस को 27, 416 (40प्रश.) तो भाजपा को 34, 756 (51प्रश.) वोट मिले थे। 2018 में 1,16,754 वोटर्स में से 76,074 (65प्रश.) मतदान हुआ। इसमें कांग्रेस को 22,708 (30प्रश.) वोट मिले जो बीते चुनाव से 10 फीसद कम रहा। भाजपा को 31 प्रश. यानी 23,922 और भाजपा बागी को 16.23प्रश. यानी 18,954 वोट मिले और टीवी-ऐसी छाप के कंफ्यूजन में करीब 10 फीसद बागी के दूसरे छाप को मिले इस तरह देखा जाए तो भाजपा के शहरी वोटर्स कम नहीं हुए बल्कि थोड़ा बढ़े पर विभक्त हो गए।
इसी तरह लोइंग की बात करें तो यहां 2013 में 89 प्रश. मतदान हुआ 17,627 में से 15,698 मतदान। कांग्रेस को 6,296 (40प्रश.) तो बीजेपी को 8,382 (53प्रश.) वोट मिले। 2018 में 19,462 में 17,237 (89प्रश.) मतदान हुआ जिसमें कांग्रेस को 38प्रश. (6,594), भाजपा को 26प्रश.(4,552), भाजपा बागी को 24.15प्रश. (4,164) वोट मिले। यहाँ वोट प्रतिशत में ज्यादा फर्क नहीं पड़ा।
पुसौर में 2013 में 60,908 में से 54,485 (89प्रश.) ने मतदान किया। कांग्रेस को 41प्रश. (22,363), भाजपा को 28,365 (52प्रश.) वोट मिला। 2018 में 67,442 में से 58,739 (87प्रश.) लोगों ने मतदान किया। इस बार कांग्रेस को बीते चुनाव से 5प्रश. कम यानी 36प्रश. (21,238) मत मिले, भाजपा को 28प्रश. (16,302) और बागी भाजपा को 22.93प्रश.(13,471) मत मिले भाजपा और उसके बागी उम्मीदवार को इस बार 51 प्रतिशत वोट मिले जो बीते चुनाव से 1प्रश. कम रहा।
सरिया में 2013 के समय 41,135 में से 36,043 (88प्रश.) मतदान इसमें कांग्रेस को 39प्रश. (14,099) और भाजपा को 53प्रश. (19,198) वोट मिले। 2018 में यहाँ से कांग्रेस को 8 प्रश. ज्यादा वोट मिले 44,671 में 85प्रश. ( 37,966) मतदान हुआ। कांग्रेस को 47प्रश. (17,792) तो भाजपा को महज 25प्रश. (9,345) और बागी उम्मीदवार को 15.90प्रश. ( 6,046) मत मिले। यहाँ से भाजपा के कोर वोटर्स छिटके बागी और पार्टी दोनों को मिलाकर 41प्रश. जो बीते चुनाव 53प्रश. था।
इस तरह दोनों विधानसभा चुनाव का समेकित आकंलन करें तो 2013 में 2,22,853 में से 1,75,253 (79प्रश.) मतदान हुआ। कांग्रेस को 70,453 (40प्रश.) तो भाजपा को 91,045 (52प्रश.) वोट मिला। 2018 में 2,50,121 में से 1,91,533 (77प्रश.) मतदान हुआ इसमें कांग्रेस को 69,062 (36प्रश.), भाजपा को 54,482 (28प्रश.) भाजपा से बागी को 42, 914 (22.40प्रश.) और 7,823 (4प्रश.) ऐसी-टीवी कंफ्यूजन वोट। दोनों विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजऱ डालें तो कांग्रेस ने 2018 में 4प्रश. वोट कम हासिल किया तो भाजपा के वोटर विभक्त हुए जो एक साथ पहले से अधिक होते। भाजपा और उसके बागी उम्मीदवार के कुल वोट 2018 में 97,396 है जबकि कांग्रेस के महज 69,062 है। यह अंतर 28,334 के करीब है और इसमें निर्दलीय (ऐसी-टीवी कंफ्यूजन) के 4प्रश. वोट जोड़ दें भाजपा और कांग्रेस में 35,000 से अधिक वोटों का अंतर है। यही अंतर कांग्रेस को कम करना होगा तभी मुकाबला बराबर पर आ खड़ा होगा। शायद इन्हीं बातों से भाजपा रायगढ़ सीट को लेकर एक तरह से आश्वस्त है जिसके कारण टिकट को लेकर हर तरह के हथकंडे अपनाये जा रहे हैं। हालांकि विधायक प्रकाश नायक ने समय के साथ पार्टी लाइन में काम किया है और यह आंकड़ों का खेल वह जानते होंगें।
लोकसभा में भाजपा के वोटर हुए एकजुट
2018 विधानसभा चुनाव के ठीक 6 महीने बाद 2019 मई में लोकसभा चुनाव हुए। जिसमें भाजपा की गोमती साय विजयी रहीं। इन्हें रायगढ़ विधानसभा से सभी क्षेत्रों से वोट विधानसभा के परिणाम जिसमें भाजपा और भाजपा बागी को मिलाकर होते हैं से अधिक वोट मिला और कांग्रेस को कम। हालांकि मत प्रतिशत थोड़ा कम होने से आंकड़ों में हेर-फेर होता है। आंकड़ों के अनुसार रायगढ़ शहर से भाजपा को 48,209, कांग्रेस को 24,775, लोइंग से भाजपा को 9,992 , कांग्रेस को 5,129, पुसौर से भाजपा को 33,471 और कांग्रेस को 20, 388, सरिया से 20, 325, कांग्रेस को 15,046 कुल 1,85,669 मतों से भाजपा को 1,19,970 और कांग्रेस को 65, 338 व अन्य को 8,334 मत मिले।
चालबाजों ने भाजपा को घेरा
21 भाजपा प्रत्याशियों के घोषणा के बाद भाजपा के राजनीतिक समीकरण में लगातार बदलाव हो रहा है। अब रायगढ़ में फूट भी वही डालने का प्रयास कर रहे जो संगठन का खास बने फिर रहे। वह एक वर्ग को उकसा रहे तो दावेदारों के नाम पर अनावश्यक माहौल बना रहे। इन्हीं हरकतों से बीते साल भाजपा ने अपना दो सीटों पर जनाधार खोया और हार तय हुई। चालबाजों से भाजपा हमेशा से घिरी हुई है जो अपने ही लोगों की गोभी भी खोदते हैं जड़ों पर म_ा भी डालते हैं भले ही बड़े नेताओं को उनकी हर चाल उनकी ही बिसात पर चलने सा प्रतीत हो पर ये ऐसे चालबाज़ है जो सांप-सीढ़ी में सांप से चढक़र जीत जाते हैं।