रायगढ़। वातानुकूलित कमरे में बैठकर बयानबाजी से वातानुकूलित माहौल बनाने का दोनों ही पार्टियों की कोशिश लोकसभा चुनाव के मतदान को अब महीने भर का समय है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। चुनाव प्रचार हो रहा है या नहीं इसकी जानकारी किसी को नहीं है। जनसंपर्क प्रत्याशी अपने स्तर पर कर रहे हैं पर बात जब दोनों ही पार्टियों के आम कार्यकर्ताओं की करें तो वे अभी भी अपने लिए कार्यादेश का इंतजार कर रहे हैं। सत्तारूढ़ भाजपा में कार्यकर्ता और पदाधिकारी संगठन लाइन पर चलने की बात तो करते हैं पर जब उनके प्रत्याशी राधेश्याम राठिया को देखा जाए तो वह एकला ही अपने नियर-डियर के साथ कैंपेन में जुटे हैं। यदा-कदा उन्हें बड़े नेता आयोजन में बुला लेते हैं। कांग्रेस में कमोबेश यही हाल है। डॉ. मेनका सिंह अपने और चंद खास लोगों के भरोसे कैंपेन कर रही हैं। कुछ दिग्गज कांग्रेसियों को उनकी उम्मीदवारी अभी भी नहीं पच रही है। इसलिए वे सुमड़ी में बैठ गए है। लोकसभा में बीजेपी का गढ़ माने जाने वाली रायगढ़ सीट से इस बार का चुनाव कई मायनों में खास है। पहला भाजपा द्वारा लगातार उम्मीदवार बदलने का प्रयोग, दूसरा कांग्रेस का हार मार्जिन कम करना, लैलूंगा और सारंगढ़ में कांग्रेस का मजबूत होना, राजपरिवार के सदस्य को टक्कर देना इत्यादि।
इन सब के अलावा अब दोनों ही पार्टियों की ओर से जुबानी जंग शुरू हो चुकी है। वातानुकूलित कमरे में बैठकर अपने लिए वातानुकूलित माहौल बनाने के लिए बयानबाजी का दौर शुरू हो चुका है। स्तर और स्तरहीन के परे माने कुछ भी कहा और बोला जा रहा है। प्रेस विज्ञप्तियों के माध्यम से दोषारोपण किया जा रहा है। मर्यादाएं लांघी जा रही है पर इससे किसी को क्या फर्क पड़ रहा है बयानबाजियां अनवरत जारी है। पहले किसने मर्यादा लांघी या कहां से इस सब का अंत होगा यह कोई नहीं जानता क्योंकि जैसे बड़े मुंडी शांत होते हैं छुटभैय्ये नेता अपना मुंह खोल देते हैं। चुनावी महौल तो कहीं से रायगढ़ लोकसभा में नहीं दिख रहा है। हां आचार संहिता के कारण जो लोग कार्रवाई की जद में आ रहे हैं उन्हें और ड्यूटी में लगे लोगों को बस महसूस हो रहा है कि अगले महीने मतदान है।
ठंडा पड़ा प्रचार
जितना बड़ा चुनाव उतना कम प्रचार ऐसा माना जाता है पर एकदम से नहीं होना यह पहली दफा देखा जा रहा है। कांग्रेस गुटबाजी से परेशान है तो भाजपा अभी सत्तासुख में मग्न और कार्यकर्ताओ को स्पष्ट कार्यादेश नहीं मिला है हां वे बड़े सम्मेलन से रिचार्ज हुए हैं और संभवत: रामनवमीं के बहाने जोरदार शक्ति प्रदर्शन करें। हालांकि कांग्रेस से जुटे कई दिग्गज नेता भी इस आयोजन समिति में है। पर जब भगवा झंडा लहराएगा और जय श्री राम के नारे लगेंगे तो इसका फायदा किसे होगा आप जानते ही हैं। संभव है कि मतदान के 10 दिन पहले चुनाव प्रचार द्रुत गति पकड़े। अभी तो उनींदे से जीतने की हामी भर कार्यकर्ता अपने कार्य में मदमस्त हैं।
मुद्दे हो गए गायब
लोकसभा चुनाव के लिए जितनी भी बैठकें, प्रेस विज्ञप्तियां और बयानबाजियां हुई हैं उनसे रायगढ़ लोकसभा के मुद्दे गायब हैं। क्या इससे हम यह समझें कि दोनों ही पार्टियों को रायगढ़ लोकसभा से कोई मतलब नहीं है वह आत्मुग्धता में निजी और मुद्दाविहान बातों में तर्क-कुर्तक कर रहे हैं। कायदे से मुद्दों के आधार पर दोनों ही दलों के नेताओं को आगे आना था पर ये तो एक दूसरे की टांग खींचने में लगे हैं।
जमीन छोड़ कर जुबानी जंग पर अटकी चुनावी राजनीति
