बिलाईगढ़-बिलाईगढ़। राजमहल में राज परिवार द्वारा आयोजित श्री विष्णु महापुराण ज्ञान यज्ञ के तृतीय दिवस के सत्र में व्यास पीठ से आचार्य श्री अनिल शुक्ला बसहा वाले ने बताया कि विष्णु महापुराण का मूल ही द्वेष और क्रोध भावना को मिटाना है, इसके रचयिता परम तपस्वी ऋषि पराशर जी अपने पिता के हत्यारे से बदला लेना के लिए द्वेष और क्रोध भावना में आकर दैत्यों का वध करना आरंभ किए, दादा वशिष्ठ, पितामह ब्रह्मा और पुलस्त्य ऋ षि के समझाने पर शांत भाव को प्राप्त हुए तथा उन्ही के वरदान स्वरूप उन्हें विष्णु महापुराण का ज्ञान प्राप्त हुआ जो कि मैत्रेयी ऋ षि को पहली बार सुनाए। विष्णु पुराण की गाथा मानवीय जीवन में सबसे बड़ी बाधा द्वेष और क्रोध के ऊपर विजय दिलाने वाले वाली पावन कथा जिसके द्वारा कोई भी प्राणी अपने जीवन में यश की प्राप्ति और तप को सिद्ध कर सकता है। आगे कथा सत्र में भक्त राज ध्रुव के पावन वंश की कथा का वर्णन किया गया जिसमें राजा प्राचीनबरही का पावन चरित्र सुनाया गया उसी वंश में भगवान श्रीहरि विष्णु के पृथु अवतार की कथा का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया। भगवान नरसिंह नारायण के चरित्र का वर्णन करते हुए आचार्य श्री ने बताया कि जीव कितना भी माया द्वारा अपने आप को सुरक्षित कर ले लेकिन मायापति के सामने किसी की माया नहीं टिकती इसी संदर्भ में बताया गया कि हिरण्यकश्यप पांच पांच वरदान को प्राप्त कर अभिमानी बन अत्याचार करता था लेकिन भगवान एक नरसिंह बनकर उनके सारे वरदान का तोड़ निकाल दिए। कथा श्रवण हेतु प्रतिदिन भक्तों की भीड़ उमड़ रही है, कथा आयोजक राज परिवार द्वारा श्रोताओं के लिए भोजन भंडारे की व्यवस्था की गई है।