रायगढ़। चक्रधर समारोह के चौथे दिन शनिवार को कार्यक्रम का शुभारंभ रायपुर से आई ओडिशी कलाकार सुश्री शिवली देवता ने ओडिशी की मनमोहक प्रस्तुति से की। सुश्री शिवली एक निपुण ओडिसी नृत्यांगना है। ओडिशी नृत्य की उत्पत्ति उड़ीसा के मंदिरों से हुई है और यह नृत्य अपनी लयबद्ध गतियां, जटिल पद चालन तथा मंदिरों में उकेरी हुई मूर्तियों की मुद्राओं के लिए जाना जाता है। शिवली अपनी कोमल मुद्राओं भावपूर्ण अभिनय तथा तालबद्ध निपुणता के माध्यम से भारतीय महाकाव्यों की कालजयी कथाओं को जीवंत कर देती है। शिवली अपनी नृत्य प्रस्तुति को एक आध्यात्मिक अर्पण के रूप में लेती है जो हमारे पुरातन परंपरा को वर्तमान से जोड़ती है। रायपुर से आई प्रसिद्ध नर्तक,कलाकार सुश्री शिवली देवता द्वारा अपनी प्रस्तुति में पुरी के जगन्नाथ स्वामी पर आधारित मनमोहक प्रस्तुति दी गई। उन्होंने अपनी कलाओं के माध्यम से भावभंगिमाओं के साथ लयबद्ध तरीके से मनमोहक नृत्य प्रस्तुत किए। सुश्री शिवली को विभिन्न प्रतिष्ठित मंचों पर उनकी प्रस्तुति के लिए सम्मानित किया गया है।
रायगढ़ घराने की ठुमरी पर थिरकी इशिका गिरी
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चक्रधर समारोह के चौथे दिन देश-प्रदेश के सुप्रसिद्ध कलाकारों ने अपनी उत्कृष्ट प्रस्तुतियों से सुर, ताल और लय का अनूठा संगम रचा। इस अवसर पर बिलासपुर की 14 वर्षीय प्रतिभाशाली कलाकार इशिका गिरी ने कथक नृत्य में मनमोहक प्रस्तुति दी। इशिका ने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत सरस्वती वंदना से की, इसके बाद उन्होंने तोड़े-टुकड़े प्रस्तुत किए और अंत में महाराजा चक्रधर सिंह के रायगढ़ घराने की ठुमरी पर नृत्य कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कम उम्र में ही शास्त्रीय नृत्य में विशेष पहचान बना चुकी इशिका गिरी ने अब तक कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के मंचों पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। वर्तमान में वे इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ से सम्बद्ध कमलादेवी संगीत महाविद्यालय रायपुर में प्रो. डॉ. आरती सिंह के मार्गदर्शन में नृत्य की बारीकियां सीख रही हैं। वर्ष 2025 में भी इशिका ने भोरमदेव महोत्सव, महिला मड़ई सहित कई प्रतिष्ठित आयोजनों में अपनी नृत्य कला से छत्तीसगढ़ की संस्कृति का गौरव बढ़ाया है।
भूमिसूता मिश्रा एवं लिप्सा रानी ने दिखाया ओडिशी नृत्य का आकर्षक कौशल
40वें चक्रधर समारोह की भव्य सांस्कृतिक संध्या में रायपुर जिले से आईं ओडिसी नृत्यांगनाएं सुश्री भूमिसूता मिश्रा एवं सुश्री लिप्सा रानी बिस्वाल ने अपने अद्वितीय नृत्य प्रदर्शन से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। मंच पर उतरीं दोनों कलाकारों ने शास्त्रीय नृत्य की कोमलता, भावभंगिमाओं की गहराई और ताल-लय की अद्भुत प्रस्तुतियों से समारोह का आकर्षण और भी बढ़ा दिया। ओडिसी नृत्य की प्राचीन शैली को जीवंत करते हुए कलाकाराओं ने भगवान गणेश , राधा-रानी संग नाचे मुरली पर आधारित भावपूर्ण आकर्षक प्रस्तुति दी। अंग-संचालन, मुख-मुद्राएँ और पदचालन की सुंदर लयबद्धता ने दर्शकों को ओडिसा की सांस्कृतिक विरासत की झलक दिखाई। संगीत और वाद्य-ताल के साथ जब दोनों ने मंच पर नृत्य किया, तो वातावरण में भक्ति और सौंदर्य का अद्भुत संगम देखने को मिला। समारोह में उपस्थित दर्शकों ने तालियों की गडगड़़ाहट से दोनों कलाकाराओं का स्वागत किया। सुश्री भूमिसूता मिश्रा और लिप्सा रानी बिस्वाल ने जिस निपुणता और भावप्रवणता से नृत्य प्रस्तुत किया, वह ओडिसी परंपरा की समृद्धि और भारतीय शास्त्रीय नृत्य की गरिमा का प्रतीक है। बता दे की मात्र 10 वर्ष की छोटी सी उम्र से ही भूमिसूता मिश्रा विभिन्न अंतरराष्ट्रीय स्तर के महोत्सवों तथा सांस्कृतिक मंचों पर अपनी विशिष्ट पहचान बन चुकी हैं। सुश्री लिप्सा रानी ने भी अनेक प्रतिष्ठित महोत्सवों और कार्यक्रमों में अपने ओडीसी नृत्य का सौंदर्य प्रदर्शन कर ख्याति अर्जित कर चुकी है।
खैरागढ़ के छात्रों ने कलसा, ठीसकी, चटकोला, रैला-रीना और करमा लोकनृत्य से बिखेरी खुशबू
सिर पर कलश रखकर छात्रों ने अद्भुत लोकनृत्य का किया प्रदर्शन
40वे चक्रधर समारोह के चौथे दिन आज इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के छात्रों द्वारा छत्तीसगढ़ी संस्कृति पर आधारित विविध छत्तीसगढ़ी लोक नृत्य की मन को छूने और झुमाने वाली आकर्षक प्रस्तुति दी। उन्होंने सबसे पहले गणपति जगवंदन और गजानन स्वामी के जयकारे से अपने प्रस्तुति की शुरुआत की। कार्यक्रम स्थल पर दूर-दूर से पहुंचे सभी दर्शकों को आज कत्थक, भरतनाट्यम, ओडिसी, तबला, संतूर, सितार, भजन, गजल जैसे विभिन्न शास्त्रीय कलाओं के साथ साथ छत्तीसगढ़ के कलसा, ठीसकी चटकोला, रैला-रीना और करमा लोकनृत्य के रंगो में भी डूबने का अवसर मिला। छात्रों ने सिर पर कलश रखकर अद्भुत कलसा नृत्य का प्रदर्शन किया। जिसने छत्तीसगढ़ की लोक आस्था, पारंपरिक जीवन शैली और कलात्मक कौशल को बखूबी दर्शाया। जिससे पूरा चक्रधर समारोह छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति से सराबोर हो गया। इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ प्रदर्शन एवं ललित कलाओं के शोध में अग्रणी संस्थान है। यह कला, फैशन डिजाइनिंग, उच्च स्तरीय शोध कार्य आदि विभिन्न गतिविधियों के लिए संपन्न है। यह संस्थान लोक कला के प्रचार व संरक्षण के लिए लगातार कार्य कर रहा है। आज चक्रधर समारोह में कला विश्वविद्यालय खैरागढ़ की टीम द्वारा विभिन्न लोककला का प्रदर्शन एवं निर्देशन डॉ. दीपशिखा पटेल, सहायक प्राध्यापक, लोकसंगीत विभाग के निर्देशन में और प्रो. राजन यादव, अधिष्ठाता, लोक संगीत एवं कला संकाय के मार्गदर्शन में प्रस्तुत किया गया तथा संरक्षिका के दायित्व में कुलपति इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ की प्रो.डॉक्टर लवली शर्मा शामिल हुई। विभिन्न लोक नृत्य के प्रदर्शन में ठेकाराम, सर्वजीत बांबेश्वर, सिद्दार्थ दिवाकर, डेरहु, खगेश पैकरा, धीरेन्द्र निषाद, कुमारी डिम्पल पुलसत्य, कुमारी वंदना, कुमारी खुशी वर्मा, कुमारी नम्रता गांवर, कुमारी हर्षलता साहू, कुमारी खुलेश्वरी पटेल ने मनमोहक प्रस्तुति दी। साथ ही गायन पक्ष डॉ. परमानंद पाण्डेय, हर्ष चंद्राकर, मनीष, कुमारी सौम्या सोनी और कुमारी साक्षी गढ़पायले द्वारा किया गया।
सितार वादन की मधुर धुनों से प्रो.डॉ.लवली शर्मा ने बांधा समां
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चक्रधर समारोह 2025 के चौथे दिन इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ की कुलपति एवं देश की प्रख्यात सितार वादक प्रो. डॉ. लवली शर्मा ने अपनी मनमोहक प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। डॉ.शर्मा ने राग सरस्वती की स्वर लहरियों से जब सितार की तारों को छेड़ा, तो समारोह शास्त्रीय संगीत के मधुर वातावरण से गुंजायमान हो उठा। श्रोताओं ने प्रस्तुति का रसपान करते हुए तालियों की गडगड़़ाहट से उनका उत्साहवर्धन किया।
गौरतलब है कि प्रो.डॉ.लवली शर्मा ने 15 वर्ष की आयु में श्रीमती वीणाचंद्रा से सितार वादन की शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात उन्होंने कोलकाता के प्रसिद्ध सितार वादक श्री कल्याण लहरी से उच्च प्रशिक्षण लिया। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से संगीत में स्नातकोत्तर उपाधि गोल्ड मेडल के साथ हासिल की, वहीं बड़ौदा विश्वविद्यालय से 1986 में पीएचडी प्राप्त की। सितार वादन में अद्वितीय निपुणता के कारण डॉ.शर्मा ने देश-विदेश के प्रतिष्ठित मंचों पर शास्त्रीय प्रस्तुतियां दी हैं। उन्हें कला भूषण सहित अनेक सम्मान प्राप्त हो चुके हैं।
डॉ. दीप्ति राउतरे ने टीम के साथ नमामि राम राघवम व मोक्ष पर किया नृत्याभिनय
रायगढ़। अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चक्रधर समारोह 2025 के चौथे दिन की सांस्कृतिक संध्या ओडि़शी नृत्य की मनोहारी प्रस्तुतियों से सराबोर हो उठी। कटक (पूरी घाट) से आईं प्रख्यात नृत्यांगना डॉ. दीप्ति राउतरे और उनकी टीम ने मंच पर ऐसी मोहक नृत्य छटा बिखेरी कि पूरा सभागार तालियों की गडगड़़ाहट से गूंज उठा। डॉ. राउतरे और उनकी टीम ने नमामि राम राघवम तथा मोक्ष पर नृत्याभिनय प्रस्तुत किया। उनकी प्रस्तुति ने भाव, राग और लय का ऐसा अद्वितीय संगम रचा कि भगवान श्रीराम के जीवन चरित्र और उनके आदर्श मानो सजीव हो उठे। गीत के भावार्थ— मैं उन राम को नमन करता हूँ, जो रघुवंशी, श्यामवर्ण, प्रजाप्रिय और सीता के पति हैं—को कलाकारों ने इतनी सुंदर अभिव्यक्ति दी कि दर्शक भावविभोर हो उठे।
नृत्य की बारीक मुद्राएँ, सूक्ष्म भाव-भंगिमाएँ और मंचीय तालमेल ने कला और भक्ति का ऐसा अनूठा समागम रचा, जिसे देखकर हर किसी के हृदय में भक्ति उमड़ पड़ी। इस अनुपम प्रस्तुति में डॉ. दीप्ति राउतरे के साथ शीतल स्वैन, आकांक्षा राउतरे, बिद्यांशी भट्टा, स्मिता मोहना, रीना बाला लेंका, पल्लवी प्रासफुटिटा, राकेश दास और अंकित साहा शामिल रहे। सामूहिक नृत्य में उनके लयबद्ध तालमेल और सौंदर्यपूर्ण गतियों ने कार्यक्रम को अविस्मरणीय बना दिया। ओडि़शी नृत्य की इस विशिष्ट प्रस्तुति ने न केवल दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया, बल्कि चक्रधर समारोह की गरिमा और भी बढ़ा दी।
श्रीमती श्वेता वर्मा ने कत्थक नृत्य से समारोह में बिखेरी यश की चांदनी
40वे चक्रधर समारोह के चौथे दिन आज प्रख्यात कलाकार श्रीमती श्वेता वर्मा ने पूरे चक्रधर समारोह में लखनऊ घराने के कथक नृत्य प्रदर्शन से यश की चांदनी बिखेरी। श्रीमती श्वेता वर्मा मात्र चार वर्ष की उम्र से नृत्य कला से जुड़ गई थी। 5 साल तक उन्होंने बनारस घराने के श्री लच्छू महाराज के शिष्य द्वारा कथक नृत्य सिखा। उन्होंने कथक और भारतीय शास्त्रीय गायन दोनों में विशारद की उपाधि प्राप्त की है। वर्तमान में वे लखनऊ घराने के कत्थक नृत्य में निपूर्ण है।
बता दे कि इन्होंने हर वर्ष विभिन्न नृत्यों का प्रतिनिधित्व संगीत नाटक अकादमी में किया है। कथक नृत्यांगना श्रीमती श्वेता वर्मा ने 2015 में हॉर्टफियर, जेनेश्वर मिश्रा पार्क, लखनऊ में कथक प्रदर्शन, 2016 और 2018 में लखनऊ महोत्सव में कथक का प्रतिनिधित्व, 2019 में देव महोत्सव, बाराबंकी में प्रदर्शन, 2020 में गुरु आरती शुक्ला के साथ डिफेंस एक्सपो, लखनऊ में प्रदर्शन, 2021 में अलाउद्दीन खान संगीत समारोह मैहर में प्रदर्शन, अयोध्या के दीपोत्सव में प्रदर्शन, रामायण मेला, अयोध्या में प्रदर्शन, 2022 में अयोध्या में दीपोत्सव, सावन महोत्सव, उज्जैन में प्रदर्शन, आईआईटी रुडक़ी, लखनऊ के कार्यक्रम में प्रदर्शन, 2023 में ग्लोबल इन्वेस्टर समिट, लखनऊ में कथक (रुद्रावतार) का प्रदर्शन, घुंघरू समारोह, जबलपुर में प्रदर्शन, 2024 में रामोत्सव अयोध्या में प्रदर्शन, आईआईटी रुडक़ी के कार्यक्रम में प्रदर्शन और 2025 में अस्सी घाट, वाराणसी में घाट संध्या कार्यक्रम में प्रदर्शन व बांदा महोत्सव में अपना मनमोहक प्रदर्शन देकर ख्याति प्राप्त कर चुकी है। श्रीमती श्वेता वर्मा ने बहुत ही सुंदर और सुमधुर कत्थक की प्रस्तुति दी, जिसने सभी श्रोताओं का मन मोहा।