चक्रधर समारोह देश के सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है। समारोह की गौरव, गरिमा, उद्देश्य और इसकीआत्मा को बचाए जाने की जरूरत है। अब चक्रधर समारोह के आयोजन को छत्तीसगढ़ शासन के संस्कृति विभाग, संगीत अकादमी या संगीत कला साहित्य मनीषियों,गुरुओं,मर्मज्ञों की एक उच्च स्तरीय समिति बनाकर सौंप दी जानी चाहिए। जो संगीत कला और साहित्य के मर्म को समझ सकें जिससे हमारी भारतीय कला संस्कृति समृद्ध उन्नतशील और अक्षुण्ण हो।
उल्लेखनीय है कि चक्रधर समारोह,किसी राजा की स्मृति में नहीं बल्कि एक कला मर्मज्ञ,कला प्रेमी,कला सम्राट,श्री चक्रधर सिंह के संगीत कला में अद्वितीय योगदान को चीर स्थाई बनाने के उद्देश्य से पुनर्जीवित किया गया।जब प्राचीन सियासत कालीन परम्परा समाप्त हो गई थी तब से लगभग 35 – 36 वर्षों बाद सन 1984 में रियासत कालीन गणेश मेला को पुनर्जीवित करने हेतु तत्कालीन सांसद रायपुर व सर्वोदयी नेता केयूर भूषण की प्रेरणा और प्रयासों से संगीत कला साहित्य प्रेमियों एवं प्रबुद्ध नागरिकों ने मिलकर श्री चक्रधर ललित कला केंद्र की स्थापना की।जिसके संस्थापक अध्यक्ष साहित्य वाचस्पति छायावाद के प्रवर्तक,पद्मश्री पंडित मुकुटधर पाण्डे तत्पश्चात क्रमश: संविधान निर्माता बोर्ड के सदस्य,साहित्यविद,प्रथम सांसद स्वंत्रता संग्राम सेनानी पंडित किशोरी मोहन त्रिपाठी एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, आयकर सलाहकार रजनीकांत मेहता जी थे,उपाध्यक्ष कला गुरु वेदमणि सिंह ठाकुर, डॉ सुचित्रा त्रिपाठी एवं अनुपम दासगुप्ता, सचिव जगदीश मेहर, सहसचिव गणेश कछवाहा,प्रचार सचिव डॉ बलदेव साव, कोषाध्यक्ष मनहरण सिंह ठाकुर थे जिनके अथक प्रयासों से समारोह ने राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय ख्यात प्राप्त की और देश व राज्य के गौरव गरिमा का प्रतीक बना।
श्री चक्रधर ललित कला केंद्र के प्रयासों से भारत सरकार ने सन 1986 से शास्त्रीय संगीत का दो दिवसीय चक्रधर समारोह स्वीकृत किया तथा शासकीय मान्यता दी और उस्ताद अल्लाउद्दीन खां संगीत अकादमी भोपाल मध्य प्रदेश को जिम्मेदारी सौंपी गई। प्रशासन के साथ आपसी समझ और सहमति बनी थी कि चूंकि यह एक कला मर्मज्ञ सम्राट की स्मृति में आयोजन है अत: मंच तथा आयोजन प्रचार सामग्री में एक कला सम्राट तबला वादक की तस्वीर होनी चाहिए जो सदैव रखी जाती थी।शुद्ध कला का आयोजन सुनिश्चित किया जाता था।शेष आठ दिवसीय कार्यक्रम जनता एवं जिला प्रशासन के सहयोग से श्री चक्रधर ललित कला केंद्र द्वारा प्रतिष्ठापूर्ण आयोजन किया जाता था।
अलाउद्दीन खां संगीत अकादमी, जिला प्रशासन और श्री चक्रधर ललित कला केंद्र ने भारतीय कला संस्कृति को जन जन पहुंचाने तथा जनप्रिय बनाने हेतु दस दिवसीय कार्यक्रम को नि:शुल्क (प्रवेश फ्री) करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया एवं दस दिवसीय कार्यक्रम की रूप रेखा तैयार किया गया जिसमें दो दिवसीय शास्त्रीय संगीत,एक दिन उपशास्त्रीय संगीत (मौलिक विधा) गीत,गज़़ल, कव्वाली, भजन इत्यादि।एक दिन हिंदी नाटक। दो दिवसीय साहित्य एक दिन कवि एक दिन सम्मेलन, मुशायरा (शुद्ध साहित्यक रचना), एक दिन छत्तीसगढ़ लोक कला एवं अन्य राज्यों की लोक कला,एक रायगढ़ कथक घराने की श्रेष्ठ प्रतिभाओं, एक छत्तीसगढ़ राज्य की संगीत कला की उच्च प्रतिभाओं हेतु तथा समापन शास्त्रीय संगीत के शीर्षस्थ कला साधकों से इस तरह से दस दिवसीय कार्यक्रम सुनिश्चित किए जाते थे। कार्यक्रम समारोह की गरिमा पूर्ण हो इसके लिए गुणीजनों की टीम कलाकारों, साहित्यकारों का चयन करती थी। चूंकि यह संगीत कला साहित्य साधकों का श्रेष्ठ आयोजन था इसलिए ग्लैमर और चकाचौंध से ज्यादा महत्व उस विधा के कला साधकों गुरु शिष्य परंपरा के तहत श्रेष्ठ साधकों को आमंत्रित किया जाता था।सरकार की विभिन्न राज्य की संगीत अकादमी,साहित्य अकादमी, लोककला अकादमी,तथा नाट्य अकादमियों से कलाकार आमंत्रित किए जाते थे जिससे कलाकार श्रेष्ठ होते व पारिश्रमिक उचित होता था तथा आर्थिक भार भी कम पड़ता था। कोई मध्यस्थ नहीं होता था। यह गरिमा पूर्ण परंपरा सन् 2003 तक चली।सन् 2003 के बाद आयोजक सांस्कृतिक समिति को भंग कर दिया गया। पूरा आयोजन जिला प्रशासन के जिम्मे सौंप दिया गया।
संस्कृति कर्मियों की यह चिंता बहुत स्वाभाविक है कि समारोह राष्ट्रीय गरिमा और गौरव बच पाएगी या नहीं? कहीं यह भी राजनीति एवं पारिवारिक महत्वाकांक्षा की भेंट न चढ़ जाए? एक राष्ट्रीय सांस्कृतिक गौरव व प्रतीक की जगह एक क्लब का भव्य ग्लैमर, स्कूल, कॉलेज, समितियों का कार्यक्रम न हो जाए? शासन को यह ध्यान रखना चाहिए कि चक्रधर समारोह भारतीय संगीत कला साहित्य एवं नाट्य कला का सर्वश्रेष्ठ और देश के सांस्कृतिक क्षितिज में विशुद्ध उच्च स्तरीय कला आयोजन का एक प्रतिष्ठापूर्ण सम्माननीय नाम है। उसके लिए संगीत,कला, साहित्य और नाट्य विधाओं के गुणी जनों की एक उच्च स्तरीय समिति का गठन तो अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए। यह ध्यान जी रखा जाना चाहिए कि कोई डमी समिति न हो।
कला प्रेमी चक्रधर सिंह के कला अवदानों को चिरस्थाई बनाने हेतु लाखो करोड़ों खर्च कर सरकार आयोजन कर रही है। लंबे समय से संगीत जगत व प्रबुद्ध नागरिकों की लगातार मांग रही है कि कला सम्राट चक्रधर सिंह के सांगीतिक एवं साहित्यक ग्रंथ सरकार की सांस्कृतिक धरोहर है।उसे सरकार को संगीत साहित्य जगत के लिए सार्वजनिक किया जाना चाहिए। जिससे आने वाली पीढ़ी इतिहास से अवगत हो सके और शोध अनुसंधान कर उसे और अधिक समृद्ध व उन्नत कर सके।आयोजन के लगभग 38 वर्ष हो गए लेकिन इस संदर्भ में भी अभी तक कोई यथायोग्य ठोस,न्यायपूर्ण,उचित कार्यवाही नहीं की गई।सवाल यह उठता है कि भव्य आयोजन के पश्चात हमारे पास क्या उल्लेखनीय दस्तावेज या सांस्कृतिक धरोहर सुरक्षित रह पाती है?
जब छत्तीसगढ़ राज्य में संगीत अकादमी,साहित्य अकादमी, लोककला एवं नाट्य अकादमी का गठन हो चुका है तब चक्रधर समारोह के आयोजन को छत्तीसगढ़ शासन के संस्कृति विभाग, संगीत अकादमी या संगीत कला साहित्य मनीषियों, गुरुओं, मर्मज्ञों की एक विशिष्ट उच्च स्तरीय समिति बनाकर सौंप दी जानी चाहिए। जो संगीत कला और साहित्य के मर्म को समझ सकें जिससे हमारी भारतीय कला संस्कृति समृद्ध उन्नतशील और अक्षुण्ण हो।
संस्कृतिकर्मियों एवं प्रबुद्ध जनों का यह मानना है कि इससे समारोह की जहां मौलिकता, प्रयोगधर्मिता,उन्नत शिलता और गौरव गरिमा बढ़ेगी वहीं प्रशासन पर से अतिरिक्त भार भी कम होगा, जनता को होने वाली असुविधा से भी राहत मिलेगी, प्रशासनिक कार्यों में गति आएगी और जनता के हितों की रक्षा होगी।
चक्रधर समारोह देश के सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक
