रायगढ़। पत्रिका ‘स्पाइल दर्पण’ नार्वे के तत्वावधान में सम्पादक- डॉ. सुरेशचन्द्र शुक्ल शरद ‘आलोक’ द्वारा दिनाँक 25जून 2025 को लोक तंत्र बचाओ विषय पर ऑनलाइन सम्पन्न अन्तर्राष्ट्रीय कवि -गोष्ठी समसामयिक वैश्विक परिदृश्य में अत्यंत सफल एवं सार्थक रही।
इस अन्तर्राष्ट्रीय कवि -गोष्ठी में रायगढ़ छत्तीसगढ़ से सम्मिलित डॉ.मीनकेतन प्रधान पूर्व प्रोफेसर, अध्यक्ष-अध्ययन मंडल हिन्दी-शहीद नंदकुमार पटेल विश्वविद्यालय रायगढ़ ने बताया कि आयोजन में विश्व के अलग -अलग देशों के साहित्यकारों की गरिमामयी संलग्नता थी।
आयोजक डॉ.सुरेशचन्द्र शुक्ल शरद ‘आलोक’ द्वारा गोष्ठी के प्रारंभ में लोकतांत्रिक व्यवस्था से संचालित विश्व के विभिन्न देशों का उल्लेख करते हुए भारत के संदर्भ में नैतिक जीवन मूल्यों के संरक्षण और वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप नीति-निर्धारण की आवश्यकता पर ज़ोर डाला गया।उन्होंने लोकतंत्र के विकास के लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सचेत रहने के साथ ही जन -भावनाओं से सतत जुड़े रहने का आह्वान किया।
कवि -गोष्ठी का आरंभ डॉ.हरनेक सिंह गिल की ‘कामयाबी’ -कविता – ‘उस दरख़्त को देख रहे हो तुम’ से हुआ,जिसमें एक वृक्ष के विकास को लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रतीक के रूप में चित्रित कर कामयाबी तक पहुंचने का संकेत किया गया है। इस क्रम में डॉ.वीणा विज ‘उदित’ (जलंधर ) ने अपने सद्य: प्रकाशित लघुकथा संग्रह- ‘रॉन्ग -नंबर की’ 100 लघु कथाओं में से दो लघु कथाओं का वाचन किया। ‘बिकाऊ कोख’ में उन्होंने मानवीय संवेदनाओं का मार्मिक चित्र खींचा है।इसी तरह प्रमिला कौशिक (दिल्ली)ने अपने काव्य संग्रह ‘चाँद पर पहरा’ से – ‘तंत्र मंत्र स्वाहा’ कविता का पठन कर वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था की विकृतियों को उजागर किया।उनकी पंक्तियाँ -अपराधी को गिरफ़्तार कौन करेगा अब?,धर्म के ठेकेदार- आदि आज की जीवंत समस्याओं का बयान करती हैं।
शशि स्वरूप पाराशर (दिल्ली) के काव्य संग्रह -‘तुम्हारा दुशाला’ से शीर्षक कविता का वाचन संचालक डॉ.सुरेश चन्द्र शुक्ल (नार्वे)ने किया।उन्होंने स्वयं की कविता -‘जातियों में बाँट गया कौन ?’ की सस्वर प्रस्तुति भी की। उक्त कड़ी में राम बाबू गौतम (अमेरिका )ने -‘पल -पल तड़पा था ‘ रचना के माध्यम से मानवीय भावों की सशक्त अभिव्यक्ति की।डॉ.ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी (उत्तर प्रदेश)ने -‘लोक तंत्र क्या बच पायेगा? कविता के माध्यम से वर्तमान समय की राजनैतिक -सामाजिक विसंगतियों से रु-ब-रु कराया।ओम सप्रा (दिल्ली)ने अपने वक्तव्य में लोकतांत्रिक व्यवस्था और भारतीय समाज की स्तिथि को उद्घाटित किया।वहीं अशोक कौशिक (दिल्ली)ने भी लोकतंत्र के वर्तमान स्वरूप को सारगर्भित वक्तव्य के रूप में प्रस्तुत किया। डॉ.कुंअर वीर सिंह मार्तण्ड(दिल्ली) ने ’साहित्य त्रिवेणी’ पत्रिका के ‘माँ मंगल’ विशेषांक के वैशिष्ट्य का उल्लेख किया।उन्होंने ‘लोकतंत्र’, ‘लोकतंत्र बचाओ’ शीर्षक कविताओं का पाठ किया। जिसमें सामाजिक और मानवीय मूल्यों को मानव जीवन के लिए आवश्यक निरूपित किया गया । इस क्रम में मीनकेतन प्रधान (रायगढ़ छत्तीसगढ़ )ने अपनी कविता- ‘लोक का तंत्र’ में लोकतांत्रिक व्यवस्था की सफलता के लिए मानवीय मूल्यों को बचाये रखने की बात कही।इसी तरह कामेश्वर पंकज(बिहार )ने साहित्य में लोकतांत्रिक व्यवस्था के उच्चतम आदर्शों की अभिव्यक्ति को आवश्यक बताते हुए ‘कुछ ऐसा हुआ इस बरस हमारे गाँव में’ कविता की सार्थक प्रस्तुति की।अंतिम कड़ी के रूप में डॉ.जवाहर कर्नाड (भोपाल मध्य प्रदेश)ने विश्व के कई देशों में हिन्दी पत्रकारिता की पुरातनता और भाषा-साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डाला।आयोजन में प्रख्यात चिंतक डॉ.संजीव कुमार(दिल्ली )की गरिमामयी उपस्थिति रही।
कार्यक्रम के अंत में संचालक -संयोजक डॉ.सुरेशचन्द्र शुक्ल में अपनी समीक्षात्मक टिप्पणियों के साथ आभार प्रकट किया। उक्त आयोजन के लिए गोष्ठी संयोजक डॉ.सुरेश चंद्र शुक्ल (नार्वे), डॉ.वीणा विज उदित (जलंधर ), डॉ. करुणा पाण्डेय, लिंगम चिरंजीव राव (इच्छापुरम आन्ध्रप्रदेश),डॉ.ज्ञानेश्वरी सिंह सखी (पुणे),डॉ.बेठियार सिंह साहू (छपरा बिहार ),सौरभ सराफ(दिल्ली),तथागत श्रीवास्तव (कोलकाता)
अमित सदावर्ती,प्रो. आर .के. पटेल, डॉ.विद्या प्रधान,शशिभूषण पंडा (सम्बलपुर ओडिशा), डॉ.ज्ञानेश्वरी सिंह सखी (पुणे) वाई.के. पंडा,जगदीश यादव, पंकज रथ शर्मा, हरिशंकर गौराहा आदि ने बधाई दी है।
डॉ.मीनकेतन प्रधान-नार्वें की अन्तर्राष्ट्रीय ऑनलाइन कवि-गोष्ठी में सम्मिलित
