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NavinKadam > पन्ना > प्रणामी मिशन के प्रमुख संत परमहंस स्वामी सदानंद को राष्ट्रपति द्वारा दिया जायेगा पद्मश्री आवार्ड, प्रणामी समुदाय में खुशी की लहर
पन्ना

प्रणामी मिशन के प्रमुख संत परमहंस स्वामी सदानंद को राष्ट्रपति द्वारा दिया जायेगा पद्मश्री आवार्ड, प्रणामी समुदाय में खुशी की लहर

lochan Gupta
Last updated: May 8, 2024 6:58 pm
By lochan Gupta May 8, 2024
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6 Min Read

(राकेश शर्मा)

आदमपुर – पन्ना। प्रणामी मिशन के प्रमुख संत परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज को महामहिम राष्ट्रपति द्वारा 28 मई को पद्मश्री आवार्ड से सम्मानित किया जाएगा। पुज्य गुरुदेव को पद्मश्री आवार्ड देने की घोषणा से क्षेत्र के प्रणामी समुदाय में खुशी की लहर देखने को मिल रही है। मानव जीवन का ये सार—तुम सेवा से पाओगे पार को जीवन का मुख्य उद्देश्य बनाते हुए पुज्य गुरुदेव ने अपने जीवन का प्रत्येक क्षण दीन—दुखियों की सेवा में लगा रखा है। वे सुबह 4 बजे से रात को 1 बजे तक सेवाकार्य में लगे रहते हैं। एक दिन में महज 3 से 4 घंटे तक विश्राम करके पुन: पूरी एनर्जी के साथ वे सेवाकार्य में लग जाते हैं।

जुई में हुआ जन्म
परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज का जन्म 1 अगस्त 1945 को हरियाणा के जिलाभिवानी के गांव जुई में हुआ था। वह एक ब्राह्मण परिवार से थे। उनके पिता बृजलाल और माता शिव बाई हिंदू संस्कृति और परंपराओं के कट्टर अनुयायी थे। उन्होंने धीरे-धीरे धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों में रुचि लेना शुरू कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप उनके बहुमुखी चरित्र ने बहुत ही निर्णायक तरीके से आकार लिया। वह कम उम्र में ही बहुत गतिशील हो गए और उनमें अपार क्षमताएं प्रदर्शित हुई।

शिक्षक से सेना और सेना से वैराग्य
बचपन में ही गुरुदेव राधिकादास जी ने उनका अभिषेक और जागरण किया था। शिक्षा प्राप्त करके शिक्षक बनें। हालाँकि नियति उन्हें कहीं और ले गई। राष्ट्र की सेवा करने की आंतरिक इच्छा ने उन्हें सेना में शामिल कर दिया। वहाँ वे अधिक धार्मिक हो गए और उनमें ‘वैराग्य’ की भावना विकसित हुई। भारतीय सेना में आठ साल तक सेवा करने के बाद इस्तीफा देना पड़ा।
1972 में बसंत पंचमी के शुभ दिन पर गुरुदेव मंगलदास जी की उपस्थिति में, युवा भानु ने विकारों और सांसारिक सुखों को त्यागने की पवित्र शपथ ली और ‘ब्रह्मचर्य’ को अपनाया – संत बनने की दिशा में पहला कदम। इसी दिन गुरुदेव मंगलदासजी ने भानु को सदानंद नाम दिया था।’

सेवा में लगाया जीवन
गुरुदेव श्री मंगलदासजी के चुने हुए शिष्यों में से एक होने के नाते,स्वामी सदानंद जी ने अत्यंत विनम्रता, प्रेम, दयालुता और सादगी के साथ सभी मार्गों और कष्टों को शामिल करते हुए उदात्तता, वाक्पटुता और निस्वार्थ सेवा के साथ धार्मिकता का मार्ग अपनाया। उन्होंने तारतम सागर और श्रीमद्भागवत कथा का अध्ययन किया और गुरुजी मंगलदासजी द्वारा भागवत कथा का गायन बहुत गंभीरता से सुना। 1979 में सिलीगुड़ी में तारतमवाणी का साप्ताहिक पारायण महायज्ञ बड़े पैमाने पर आयोजित किया गया था। यहीं पर सुंदरसाथ और संत मंडल के बीच सदानंद महाराज जी ने अपनी बहुआयामी विशेषताओं और ज्ञान को बड़े उत्साह और गतिशीलता के साथ प्रदर्शित किया था। उनकी भक्ति ने गुरुदेव मंगलदासजी को बहुत प्रभावित किया, जिससे अंततः उन्हें भागवत कथा और तारतम वाणी पर चर्चा करने और प्रवचन शुरू करने का अधिकार और पवित्र आशीर्वाद मिला। तब से महाराज श्री सदानंदजी ने पिछले 45 वर्षों से विभिन्न धर्मों के माध्यम से अपने गुरुदेव के आशीर्वाद को वास्तविकता में अनुवादित किया है।

मानव जीवन का ये सार—तुम सेवा से पाओगे पार
गुरुदेव श्री मंगलदास जी व श्री राधिकादास जी के अशीर्वाद से स्वामी सदानंद जी ने सेवा कार्य को जीवन में सबसे ज्यादा महत्व दिया। उन्होंने आमजन को जागरित करते हुए मंत्र दिया कि मानव जीवन का ये सार—तुम सेवा से पाओगे पार। स्वामी सदानंद जी ने अब तक सैंकड़ों गौशालाएं, अनाथालयों, वृद्धाश्रमों, मानसिक रोगियों के लिए सदगुरु अपना घर, मंदिरों, अस्पतालों, सत्संग भवन, स्कूलों, कॉलेजों की स्थापना की। इसके अलावा पोलियों रोगियों के लिए जगह—जगह आप्रेशन कैंप लगाकर पोलियों से अपाहिज हुए लोगों को पुन: स्वास्थ जीवन प्रदान करने का कार्य लगातार चल रहा है। गरीब कन्याओं के विवाह का कार्य, रक्तदान शिविर, नेत्र जांच व आप्रेशन शिविर, स्वास्थ शिविर, जैविक खेती जागरुकता, पौधारोपण, अन्नदान व भंड़ारे जैसे दर्जनों सेवाकार्य लगातार उनके द्वारा संचालित किए जा रहे हैं। कोरोनाकाल में गुरुदेव ने जगह—जगह भोजन व स्वास्थ्य सेवा की व्यवस्था करवाई और केंद्र व विभिन्न प्रदेश की सरकारों को आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाई।

देश के हर जिले में जागणी
स्वामी सदानंद जी महाराज ने देश के प्रत्येक जिले में जाकर प्रणामी धर्म की जागणी करते हुए लोगों को सेवा कार्य में जोड़ा। नेपाल में भी उन्होंने हिंदू धर्म का प्रचार—प्रसार करने के साथ—साथ सेवा कार्य में लोगों को लगाया। इसके चलते नेपाल व भारत में अनेक संस्थाओं से समय—समय पर उनको सम्मान मिलता रहा है। नेपाल का सर्वोच्च पुरस्कार वहां की सरकार द्वारा उनको दिया जा चुका हैं। संत समाज द्वारा उनको संत शिरोमणि व परमहंस जैसी अति सम्मानिय उपाधि दी गई है। अब भारत की महामहिम राष्ट्रपति द्वारा उनको पद्मश्री द्वारा सम्मानित करना प्रणामी समुदाय के लिए अत्यंत गौरव की बात है।

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