रायगढ़। जिले में औद्योगिक विकास के साथ प्रदूषण एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। रायगढ़ जिला मुख्यालय के 25 किलोमीटर के दायरे में पावर प्लांट सहित स्पंज आयरन प्लांट और छोटे-बड़े कुल 73 उद्योग संचालित हैं। गंभीर बात यह है कि इन ज्यादातर उद्योगों में औद्योगिक प्रदूषण को कम करने के कोई सार्थक उपाय नहीं किये जा रहे हैं। जिससे रायगढ़ सहित आस-पास के इलाके में प्रदूषण का खतरा गहराता जा रहा है। काला धुआं धूल के कण से जहां पेड़ पौधों पर प्रदूषण की मार पड़ रही है, वहीं आम जन जीवन प्रदूषण की चपेट में है। सर्दी के मौसम में प्रदूषण का खतरा बेहद खतरनाक होता जा रहा है। जानकारों की माने तो पीएम- 2.5 स्तर का धूल और धुंआ बेहद खतरनाक हो जाता है। जो सीधे तौर पर मानव स्वास्थ्य पर विपरीत असर डालता है। यही वजह है कि सर्दी के मौसम में दमा, स्नोफीलिया जैसे स्वांस संबंधी बीमारी के चपेट में ज्यादातर लोग आ रहे हैं। इसके अलावा टीवी, कैंसर, स्किन कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। जिससे माना जा रहा है कि रायगढ़ जिले में औद्योगिक विकास मानव जीवन के लिए अभिशाप का रूप लेता जा रहा है। औद्योगिक प्रदूषण को रोकने के लिए सार्थक उपाय नहीं किए जाने की स्थिति में आने वाले वक्त में इसके बेहद घातक परिणाम सामने आ सकते हैं। दरअसल रायगढ़ जिले में अंधाधुंध तरीके से औद्योगिक इकाइयों की स्थापना अनवरत जारी है। बताया जाता है कि रायगढ़ जिले के तमनार, गेरवानी तराईमाल क्षेत्र में पावर प्लांट, स्पंज ऑयरन प्लांट के अलावा कई छोटे-बड़े उद्योग संचालित हैं। जिसमें पावर प्लांट की संख्या करीब 6 है, इसके अलावा पावर और स्पंज आयरन के 10 प्लांट हैं। इस तरह कुल 73 छोटे-बड़े औद्योगिक इकाइयों से बड़े पैमाने पर काला धुआं निकलता है। खास बात यह है कि औद्योगिक इकाइयों के संचालक को लेकर पर्यावरण संरक्षण मंडल के गाइड लाइन का पालन करने की बात औद्योगिक इकाइयों का प्रबंधन करता तो है, लेकिन वास्तविकता कोसों दूर होती है। यही वजह है कि रायगढ़ जिले में बड़े पैमाने पर औद्योगिक प्रदूषण का जहर पैर पसारता जा रहा है। जिसका दुष्प्रभाव भी अब साफ नजर आ रहा है। बताया जाता है कि एक तरफ जहां उद्योगों से बड़े पैमाने पर काला धुआं पर्यावरण को तेजी से प्रभावित कर रहा है, वहीं भारी वाहनों के संचालन से जर्जर सडक़ों से उडऩे वाली धूल प्रदूषण का दूसरा बड़ा कारण बनता जा रहा है। जानकारों की माने तो एक साल के भीतर रायगढ़ जिले में बड़े पैमाने पर उद्योगों के इकाइयों में विस्तार किया गया। बीते एक वर्ष के भीतर 34 औद्योगिक इकाइयों का विस्तार किया गया। इस तरह उद्योगों की उत्पादन क्षमता में तकरीबन तीन गुना वृद्धि हो गई। जिससे प्रदूषण भी तीन गुना बढ़ गया है। बताया जाता है औद्योगिक प्रदूषण को रोकने के लिए उद्योगों में इएसपी का उपयोग अनिवार्य है, लेकिन चिमनियों से निकलने वाला धुआं बताता है कि इएसपी का संचालन नियमित रूप से नहीं किया जाता। ज्यादातर उद्योगों के चिमनियों से काला धुुंआ निकलते देखा जा सकता है। जबकि इएसपी चालू रहने पर चिमनियों से निकलने वाला धुआं रूई की तरह उड़ाता नजर आएगा। अगर चिमनियों से निकलते धुएं का रंग भूरा नजर आए तो आसानी से समझा जा सकता है कि स्थापित इएसपी में कुछ चालू और कुछ बंद रखा गया है। इस तरह औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला काला धुआं और भूरा धुआं पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं और इसके लिए औद्योगिक इकाइयां पूरी तरह से जिम्मेदार हैं। इसके बावजूद पर्यावरण संरक्षण मंडल की ओर से ऐसे उद्योगों के खिलाफ सार्थक कार्यवाही नहीं की जाती जिससे ज्यादातर उद्योग उत्पादन लागत कम कर ज्यादा लाभ कमाने के फेरे में इएसपी चालू रखना नहीं चाहते। जिसकी वजह से चिमनियों से निकलने वाला धुआं सीधे तौर पर मानव स्वास्थ्य पर विपरीत असर डाल रहा है। बताया जाता है सर्दी के इस मौसम में बढ़ते प्रदूषण के खतरे को खुली आंखों से देखा जा सकता है। जिससे आम लोगों में सर्दी, खांसी, स्नोफीलिया जैसे स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ता जा रहा है।
खेती किसानी पर भी प्रदूषण की मार
औद्योगिक प्रदूषण का दुष्प्रभाव सिर्फ मानव जीवन पर असर नहीं डाल रहा है। बल्कि इसका दुष्प्रभाव पशु पक्षियों पर भी पड़ रहा है। इसके अलावा औद्योगिक इकाइयों के आस-पास स्थित क्षेत्र में खेती किसानी पर भी इसका असर पड़ रहा है। बताया जाता है कि औद्योगिक इकाइयों के आस-पास की खेतीहर भूमि पर उत्पादन लगातार गिरता जा रहा है। काला धुआं धूल की परत और फ्लाई एस के दुष्प्रभाव से आम जन जीवन का जीना दुश्वार हो गया है। आदिवासी बाहुल्य ग्रामीण क्षेत्रों में आम लोग जल, जंगल, जमीन बचाने की दिशा में औद्योगिक प्रदूषण के खिलाफ आवाज बुलंद करते तो हैं, लेकिन सरकारी महकमा नियम कानून का हवाला देकर उन्हें रोकने में सफल हो जाता है। प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर कार्रवाई के नाम पर कागजी खाना पूर्ति कर सरकारी अमला अपने दायित्वों से पल्ला झाड़ता नजर आता है।
घर की छतों पर धूल की काली परत
प्रदूषण की स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि रायगढ़ शहर सहित 25 किलोमीटर के दायरे में काले धूल की परत घर के छतों से लेकर फर्श और घर के भीतर काले निशान छोड़ रहे हैं। इसे पीएम-2.5 स्तर का प्रदूषण के तौर पर कहा जा सकता है। बताया जाता है पीएम-10 स्तर के धुएं और धूल के कण को उड़ते देखा जा सकता है। लेकिन पीएम-2.5 स्तर के धूल के कंण सीधे तौर दिखते नहीं। धूल के कारण सीधे नाक के माध्यम से स्वासनलिका तक प्रवेश कर जाते हैं। जो बेहद खतरनाक माना जा सकता है। सर्दी के इस मौसम में घरों के छतों से लेकर पेड़ पौधों पर धूल की काली परत पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक माना जा सकता है। धूल की परत घरों की छतों पर जम रहे हैं, जो खाली पैर चलने पर सीधे घर के भीतर पहुंच रहा है और इसका दुष्प्रभाव भी मानव स्वास्थ्य पर पड़ता दिख रहा है।
जर्जर सडक़ों की उड़ती धूल बेहद खतरनाक
औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला काला धूंआ जितना प्रदूषण को बढ़ा रहा है, उससे अलग सडक़ों पर भारी वाहनों के परिचालन से जर्जर सडक़ों से उडऩे वाले धूल के कण भी प्रदूषण की दृष्टि से बेहद खतरनाक साबित हो रहे हैं। बताया जाता है कि औद्योगिक इकाइयों की ओर से अपने आस-पास की सडक़ों पर पानी का छिडक़ाव करने के निर्देश हैं, लेकिन ज्यादातर उद्योगों में ऐसा नहीं किया जाता। जिससे तराईमाल, गेरवानी, तमनार क्षेत्र सहित रायगढ़ के आसपास जर्जर सडक़ों पर भारी वाहनों के परिचालन से उड़ती धूल की परत जानलेवा साबित हो रही है। इसके अलावा उद्योगों से निकलने वाला फ्लाई-एस औद्योगिक प्रदूषण को बढ़ावा दे रहा है। बताया जाता है कि बीते एक साल के भीतर उद्योगों से एक करोड़ 72 लाख मिट्रिक टन फ्लाई ऐश का उत्सर्जन हुआ था। गौर करने वाली बात यह है कि रायगढ़ जिले में संचालित उद्योगों में से तीन-चार उद्योग के पास ही फ्लाई ऐश डंपिंग यार्ड है। अन्य उद्योगों के द्वारा निकलने वाला फ्लाई एश कहां जाता है? इसे आसानी से समझा जा सकता है कि खुले में फेंक कर उद्योग प्रबंधन अपनी बला टाल देते हैं जिसका दुष्प्रभाव प्रदूषण के तौर पर रायगढ़ जिले के 25 किलोमीटर दायरे में उड़ता नजर आता है।