रायगढ़। जिला मुख्यालय की रायगढ़ सीट से भाजपा की जबरदस्त जीत का असर नगर निगम की राजनीति पर पडऩे के आसार हैं। रायगढ़ नगर निगम में कांग्रेस की शहर सरकार के 4 साल के कार्यकाल में कराए गए विकास कार्यों का लेखा-जोखा से लेकर विकास कार्यों की नई संभावनाओं से शहर सरकार पर दबाव बढ़ सकता है। राजनीति की जानकारों की माने तो रायगढ़ विधानसभा सीट पर जीत के साथ प्रदेश में सरकार आने से भाजपा हर मोर्चे पर कांग्रेस को शिकस्त देने की रणनीति बना सकती है। विधानसभा चुनाव में जीत के इस क्रम को लोकसभा चुनाव सहित नगरीय निकाय चुनाव में दोहराने के लिए भाजपा आने वाले दिनों में कांग्रेस के रास्ते पर रोड़ा खड़ा कर सकती है। इस स्थिति में रायगढ़ नगर निगम में भाजपा और कांग्रेस के बीच राजनीति आने वाले दिनों में गरमाने के आसार हैं। बताया जाता है कि रायगढ़ नगर निगम में मौजूदा दौर में कांग्रेस की सरकार है, लेकिन बीते 4 वर्षों में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के बड़े कार्यों को नहीं कराए जा सके। जबकि रायगढ़ शहर में दैनिक सब्जी मंडी निर्माण के लिए छत्तीसगढ़ शासन की ओर से 14 करोड़ की राशि मंजूर की गई थी। इस बड़े मुद्दे को लेकर आने वाले दिनों में कांग्रेस-भाजपा की राजनीति तो गरमा सकती है, वहीं शहर के अलग-अलग वार्डों में विकास कार्यों के लिए आबंटित फंड का लेखा-जोखा भाजपा लेना चाहेगी। बताया जाता है कि इस विधानसभा चुनाव में रायगढ़ शहरी क्षेत्र के सिर्फ एक बूथ पर ही कांग्रेस को लीड मिल पाई। जबकि शेष सभी बूथों पर भाजपा को भारी बढ़त मिली। भाजपा नगर निगम के 48 वार्डों में कांग्रेस की जबरदस्त पराजय को शहर सरकार की विफलताओं के रूप में देख रही है। भाजपा इस बात से खासा उत्साहित है कि जनता ने शहरी क्षेत्र में कांग्रेस को जिस तरह से नकार दिया उससे साफ जाहिर है कि नगर निगम क्षेत्र की जनता नगर निगम की शहर सरकार की कार्यशैली पर मुहर नहीं लगाई। यह सीधे तौर पर शहर सरकार की विफलताओं को दर्शाता है। भाजपा इन विफलताओं को हर चुनाव में जनहित के मुद्दे के तौर पर उठाने की रणनीति पर काम कर सकती है। बताया जाता है कि 48 वार्ड वाले रायगढ़ नगर निगम में भाजपा के जहां सिर्फ 22 पार्षद हैं, वहीं कांग्रेस के हिस्से में 26 पार्षद हैं। निगम में कांग्रेस की सरकार है। उसके बावजूद कांग्रेस के पार्षद खेमों में बंटे नजर आते हैं। राजनीति के जानकारों की माने तो निगम में कांग्रेस की शहर सरकार बनने के दौरान से लेकर लगातार खेमेबाजी का दौर पार्षदों के बीच बनी हुई है। जिसका असर यह हुआ कि नगर निगम में वार्डों में विकास कार्यों को लेकर शहर सरकार पर मनमानी करने के आरोप लगाते रहे। गौर करने वाली बात यह है कि ज्यादातर कांग्रेसी पार्षद अपने ही महापौर पर पक्षपात करने का आरोप बढ़ते रहे। ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां निगम की सरकार में खेमेबाजी साफ नजर आई। भाजपा भी नगर निगम की सरकार पर फंड का बंदरबाट करने का आरोप मढ़ती रही, लेकिन शहर सरकार अपनी ही शैली में कामकाज करती नजर आई। क्योंकि प्रदेश में भाजपा की सरकार होगी तो भाजपा शहर सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। बताया जाता है कि आने वाले दिनों में भाजपा जनहित के मुद्दों को लेकर शहर सरकार पर दबाव डालेगी और कांग्रेस पलटवार करेगी तो निगम की राजनीति में गर्माहट की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।
भाजपा की रहेगी चौकीदार की नजर!
नगर निगम में कांग्रेस की सरकार के 4 साल पूरे हो रहे हैं, 2024 के दिसंबर में निगम में चुनाव होंगे इससे पहले भाजपा शहर सरकार से एक-एक काम का हिसाब मांग सकती है। खास बात यह है कि भाजपा इस एक साल में जनहित से जुड़े विकास कार्यों को लेकर गंभीरता से पहल कर सकती है। बताया जाता है कि भाजपा इस एक साल में कांग्रेस के 4 साल के नाकामियों को जहां गिनाएगी वहीं प्रदेश की भाजपा सरकार से नए विकास कार्यों के लिए फंड की कमी नहीं होने देगी। इस स्थिति में शहर सरकार पर भाजपा चौकीदार की भूमिका में रह सकती है, जिससे कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती है।
फंड को लेकर श्रेय लेने की लगी रही होड़
कांग्रेस शासन काल में रायगढ़ नगर निगम क्षेत्र में फंड को लेकर स्थानीय विधायक और शहर सरकार के बीच श्रेय लेने की होड़ मची रही। बताया जाता है कि ज्यादातर विकास कार्यों के लिए दो-दो प्रस्ताव बनाए जाते रहे। एक प्रस्ताव शहर सरकार की होती तो दूसरा प्रस्ताव स्थानीय विधायक की ओर से दिया जाता रहा। जिसको लेकर पार्षद दो अलग-अलग धड़ां में बंटे रहे। वार्डों में सडक़ नाली के अलावा अन्य निर्माण कार्यों की मंजूरी पर आरोप प्रत्यारोप का खेल चलता रहा। अब विधानसभा चुनाव में रायगढ़ सीट से मिली करारी हार के बाद कांग्रेस पार्षदों के बीच तरह-तरह की चर्चा छिड़ गई है। बताया जाता है कि कांग्रेस को अपने ही लोगों पर विश्वास न कर पाना भारी पड़ा। कई पार्षद तो दबी जुबान पर विधायक और महापौर के बीच बनी खाई शहरी क्षेत्र में कांग्रेस के बड़े पैमाने पर पिछडऩे का कारण मान रहे हैं। प्रदेश और शहर में सरकार होने के बाद भी ज्यादातर कांग्रेसी पार्षदों को बीते 4 वर्षों में विकास कार्य करने और फंड के लिए तरसना पड़ा।
भाजपा की जीत से गरमा सकती है रायगढ़ नगर निगम की राजनीति
शहर सरकार के खिलाफ भाजपा की क्या होगी नई रणनीति, धड़ों में बंटी कांग्रेस की शहर सरकार के लिए बड़ी चुनौती
