सुकमा। एक समय जिन हाथों में बंदूकें थीं, आज उन्हीं हाथों में औज़ार, हुनर और भविष्य के सपने हैं। सुकमा जिले के पुनर्वास केंद्र में रह रहे 35 आत्मसमर्पित नक्सलियों ने हिंसा का रास्ता छोडक़र निर्माण और विकास को अपनाया है। जिला प्रशासन और एसबीआई आरसेटी (स्टेट बैंक ऑफ इंडिया – ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान) के संयुक्त प्रयास से इन्हें मेसन (राजमिस्त्री) का व्यावसायिक प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनने की दिशा में ठोस कदम उठाया गया है।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में कुल 35 प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें 15 महिलाएं और 20 पुरुष शामिल हैं। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें भवन निर्माण से जुड़े तकनीकी एवं व्यावहारिक कौशल जैसे नींव निर्माण, ईंट चिनाई, प्लास्टर कार्य, छत निर्माण, गुणवत्ता मानक तथा सुरक्षा उपायों का गहन अभ्यास कराया गया। इसका उद्देश्य उन्हें शासकीय एवं निजी निर्माण कार्यों में दक्ष बनाकर सम्मानजनक रोजगार से जोडऩा है। यह पहल केवल कौशल विकास तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मसमर्पित युवाओं के जीवन को नई दिशा देने का सशक्त माध्यम बन रही है। अब ये प्रशिक्षित युवा प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के अंतर्गत जिले के अधूरे और नए आवासों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। लंबे समय से नक्सल प्रभावित एवं दुर्गम क्षेत्रों में कुशल राजमिस्त्रियों की कमी एक बड़ी चुनौती रही है, जिसे यह कार्यक्रम प्रभावी ढंग से दूर कर रहा है।
इस अवसर पर कलेक्टर देवेश ध्रुव ने कहा कि आत्मसमर्पण का वास्तविक अर्थ हथियार छोडऩे के साथ-साथ आत्मनिर्भर बनकर समाज की मुख्यधारा में शामिल होना है। उन्होंने कहा कि पुनर्वास केंद्र में रह रहे युवाओं को कौशल प्रशिक्षण के माध्यम से स्थायी और सम्मानजनक जीवन देना जिला प्रशासन की सर्वोच्च प्राथमिकता है। स्क्चढ्ढ क्रस्श्वञ्जढ्ढ के सहयोग से संचालित यह प्रशिक्षण कार्यक्रम सुकमा जिले में शांति, विश्वास और विकास की मजबूत नींव रख रहा है।
वहीं जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी मुकुन्द ठाकुर ने कहा कि प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण सहित विभिन्न निर्माण कार्यों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए कुशल मानव संसाधन अत्यंत आवश्यक है। यह प्रशिक्षण न केवल आत्मसमर्पित नक्सलियों को रोजगार से जोड़ रहा है, बल्कि जिले में निर्माण कार्यों की गुणवत्ता और गति को भी सुदृढ़ कर रहा है। प्रशिक्षण पूर्ण होने के बाद ये प्रतिभागी अपने स्वयं के आवास निर्माण के साथ-साथ ग्राम पंचायत एवं स्थानीय स्तर पर संचालित विकास कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाएंगे। इससे उन्हें स्थायी आजीविका, सामाजिक सम्मान और नई पहचान प्राप्त होगी। जिला प्रशासन के प्रयास से संचालित यह रोजगारमूलक कार्यक्रम आत्मसमर्पित नक्सलियों के स्थायी पुनर्वास, आर्थिक सशक्तिकरण और सामाजिक समावेशन की दिशा में एक अनुकरणीय उदाहरण बनकर उभरा है। सुकमा जिले की यह पहल स्पष्ट संदेश देती है कि संवेदनशील प्रशासन, विश्वास और विकास के माध्यम से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्थायी शांति संभव है।
जहाँ बंदूकें खामोश हुईं, वहाँ बन रहे घर
पुनर्वास केंद्र में 35 आत्मसमर्पित नक्सली बने राजमिस्त्री, सुकमा में पुनर्वास पहल बनी मिसाल



