रायगढ़। जिले में स्थित ग्राम पेलमा और आसपास के गांवों उरबा, हिंझर, लालपुर, मडवाडुमर तथा सक्ता के ग्रामवासियों ने ग्राम सभा में एक प्रस्ताव पारित कर साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) से पेलमा कोयला खदान परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण से जुड़ी मांगें रखी हैं। ग्रामीणों का कहना है कि वे कोयला खनन के लिए अपनी जमीन तभी देंगे जब उनकी मांगें पूरी की जाएंगी, जिसमें भूमि का चार गुना मुआवजा, नौकरियां और पुनर्वास शामिल हैं। यह मांगें कोल बेयरिंग एरियाज (एक्विजिशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट, 1957 (सीबीए एक्ट) और राइट टू फेयर कंपेंसेशन एंड ट्रांसपेरेंसी इन लैंड एक्विजिशन, रिहैबिलिटेशन एंड रिसेटलमेंट एक्ट, 2013 (आरएफसीटीएलएआरआर एक्ट) के प्रावधानों का हवाला देते हुए की गई हैं।
ग्राम सभा के आवेदन में कहा गया है कि भूमि का मुआवजा अधिग्रहण के समय प्रचलित बाजार मूल्य का चार गुना दिया जाए, जो आरएफसीटीएलएआरआर एक्ट की पहली अनुसूची के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में लागू मल्टीप्लायर (1 से 2 तक) और 100 प्रतिशत सोलाटियम को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया जा सकता है, जिससे कुल मुआवजा बाजार मूल्य का चार गुना तक पहुंच सकता है। साथ ही, प्रति दो एकड़ जमीन पर एक नौकरी प्रदान की जाए। नौकरियों की पात्रता के लिए धारा 9(1) के प्रकाशन की तिथि को आधार न मानते हुए सर्वेक्षण की पूर्व तिथि से जन्मे सभी व्यक्तियों को शामिल किया जाए। सीबीए एक्ट की धारा 9(1) के तहत इच्छुक व्यक्तियों को नोटिस जारी किया जाता है, लेकिन ग्रामीणों की मांग है कि पात्रता की गणना पहले के सर्वेक्षण से की जाए ताकि अधिक परिवार लाभान्वित हो सकें।
ग्रामीणों ने यह भी मांग की है कि यदि पेलमा कोयला खदान से प्रभावित परिवार बसाहट की एकमुश्त राशि चाहते हैं, तो उन्हें दीपका-गेवरा परियोजना की तरह प्रति परिवार 15 लाख रुपये दिए जाएं। यह मांग आरएफसीटीएलएआरआर एक्ट की दूसरी अनुसूची के पुनर्वास और पुनर्स्थापन प्रावधानों पर आधारित है, जिसमें प्रभावित परिवारों को रोजगार या एकमुश्त राशि का विकल्प दिया जाता है। इसके अलावा, पूरे गांव की जमीन अधिग्रहित की जाए और किसी किसान की एक डिसमिल जमीन भी न बचे, ताकि आंशिक अधिग्रहण से होने वाली परेशानियां टाली जा सकें। भूमिहीन परिवारों को माइनिंग डेवलपमेंट ऑपरेटर (एमडीओ) मॉडल के तहत अदानी कंपनी में सीधी नौकरी दी जाए, न कि ठेकेदारों के अधीन। लंबे समय से वन भूमि पर काबिज भूमिहीन परिवारों को उचित परितोष राशि प्रदान की जाए, जिसका आधार आरएफसीटीएलएआरआर एक्ट की धारा 3(ब) में परिभाषित ‘प्रभावित परिवार’ है, जिसमें आजीविका खोने वाले शामिल हैं।
आवेदन में धारा 4 के प्रकाशन के बाद की गई सभी रजिस्ट्री, खरीद-बिक्री को रद्द करने की मांग की गई है। सीबीए एक्ट की धारा 4 प्रारंभिक जांच और अधिसूचना से संबंधित है, जबकि आरएफसीटीएलएआरआर एक्ट की धारा 26 के तहत प्रारंभिक अधिसूचना (धारा 11) की तिथि पर बाजार मूल्य निर्धारित होता है, और उसके बाद की लेन-देन को अक्सर मान्यता नहीं दी जाती यदि वे अधिग्रहण को प्रभावित करें। यदि रद्द न किया जाए, तो प्रभावितों के पट्टा विभाजन के लिए विशेष शिविर आयोजित किया जाए। किसी भी सर्वेक्षण को ग्रामवासियों और एसईसीएल के बीच सहमति के बाद ही किया जाए, और सहमति का लिखित प्रमाण पत्र दिया जाए।
ग्रामीणों ने जोर दिया कि जमीन का मुआवजा लेने से पहले नौकरी का कन्फर्मेशन लेटर दिया जाए, और विस्थापन की प्रक्रिया पूरी सहमति से हो। खदान शुरू होने से पहले वैकल्पिक स्थान दिखाकर राय ली जाए, और नौकरियां रायगढ़ जिले में ही दी जाएं। ये मांगें आरएफसीटीएलएआरआर एक्ट की धारा 4 (सोशल इंपैक्ट असेसमेंट) और धारा 16 (पुनर्वास योजना) के अनुरूप हैं, जो ग्राम सभा की सहमति को अनिवार्य बनाती हैं।
पृष्ठभूमि में, पेलमा कोयला ब्लॉक एसईसीएल को आवंटित है, जहां अदानी समूह एमडीओ के रूप में कार्यरत है। पिछले वर्षों में यहां भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं, जिसमें ग्रामीणों ने अनधिकृत कब्जे का आरोप लगाया है। एसईसीएल अधिकारियों ने अभी इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन ग्राम सभा ने कहा है कि इन मांगों पर सहमति बनने के बाद ही आगे विचार किया जाएगा। यह घटना कोयला खनन परियोजनाओं में स्थानीय समुदायों के अधिकारों और कानूनी प्रावधानों के बीच संतुलन की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
एसईसीएल से पेलमा कोयला खदान के लिए मुआवजा व नौकरियों की मांग
ग्रामसभा में प्रस्ताव पारित कर रखी गई मांग
