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NavinKadam > जशपुरनगर > छींद कांसा जशपुर की एक खास धरोहर
जशपुरनगर

छींद कांसा जशपुर की एक खास धरोहर

स्व सहायता समूह की 100 महिलाएं बना रही है सुन्दर और आकर्षक टोकरी

lochan Gupta
Last updated: June 1, 2025 2:05 am
By lochan Gupta June 1, 2025
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5 Min Read

जशपुरनगर। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के सुशासन में महिलाओं को स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्व सहायता समूहों को मजबूत किया जा रहा है और उनको विभिन्न आजीविका मूलक गतिविधियों से जोड़ा जा रहा है।
जशपुर जिले के दूरस्थ अंचलों की महिलाओं के द्वारा छिंद कांसा से बनाई हुई टोकरी एवं अन्य उत्पाद काफी टिकाऊ एवं मनमोहक हैं। यह मूलत: जशपुर जिले के काँसाबेल विकासखण्ड की स्व सहायता समूह की दीदिओं द्वारा बनाया जा रहा है और अच्छी आमदनी प्राप्त की जा रही है। चूकि यह अभ्यास लगभग 30 साल पुराना है परंतु इसमे उद्यमिता की छाप राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन तत्पश्चात छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प बोर्ड के प्रयास से संभव हो सका है। वर्तमान मे लगभग 100 महिलाएं इस उद्योग में जुड़ी हैं और सतत् रूप से उत्पादन एवं विक्रय कार्य में लगी हुई है। आकर्षक एवं सुन्दर छिंद कांसा की टोकरी होने की वजह से जिले में और राज्य के कोने-कोने से इसकी सतत मांग बनी रहती है। जशपुर जिला उत्पादों की विशेष ब्रांड जशप्योर के बनने के पश्चात भारत के अन्य राज्यों से भी लगातार मांग बढ़ रही है, जिससे इस उद्योग में जुड़ी महिलयों में विशेष उत्साह नजर आ रहा है।
यह कार्य काँसाबेल विकासखण्ड के कोटानपानी ग्राम पंचायत के अधिकतर घरों की महिलायें द्वारा किया जा रहा है कोटानपानी ग्राम पंचायत मूलत:आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र हैं।
छिंद एवं कांसा का सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व- जशपुर के आदिवासी समुदाय मे विवाह देवता पूजन, छठ पूजा आदि में छिंद कांसा का विशेष महत्व है। छिंद और कांसा घास से निर्मित टोकरी एवं उत्पाद प्राकृतिक और सांस्कृतिक प्रतीत होते हैं। वैसे छिंद कांसा टोकरी बनाने का प्रचलन लगभग 30 वर्ष पुराना है। इसके पूर्व सदियों से छिंद की चटाई बनाने का प्रचलन भारत के विभिन्न राज्यों मे व्याप्त रहा है। कोटानपानी की दीदियों से बात करने पर उन्होंने बताया की मन्मति नाम की एक किशोरी बालिका आज से 25 वर्ष पूर्व समीप के विकासखंड फरसाबहार के ग्राम पगुराबहार में अपने नानी के घर गई थी और वहाँ पर अपनी ननिहाल की महिलाओं से टोकरी बनाने का कार्य सीखा। चूंकि यह एक नया प्रयोग था पूर्व मे केवल चटाई बनाई जाती रही है। इस कार्य मे विशेषता यह थी की टोकरी छिंद और कांसा घाँस से मिश्रित करते हुए टोकरी का ढांचा तैयार किया जाना था। छिंद को कांसा घास के साथ मिश्रित कर गोल आकार में तैयार किया जाना आसान और रोचक था। मन्मति अपने ननिहाल से लौटकर
कोटानपानी में यह कार्य शुरू किया और अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए बनाया करती थी। पड़ोस की महिलाओं ने सुन्दर टोकरी निर्माण करते हुए मन्मति को देखा और कुछ महिलाएं भी इसे बनाने की इच्छा प्रकट कर सीखने लगी। कुछ महिलायें टोकरी बनाकर स्थानीय बाजार मे बेचना शुरू कर दी जिस से उन्हे कुछ लाभ प्राप्त हुए और ये सिलसिला लगभग 10 वर्षों तक चलता रहा। 2017 मे राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका बिहान के स्व सहायता समूह का गठन शुरू हो गया। आजीविका गतिविधि सर्वेक्षण मे छिंद कांसा टोकरी निर्माण को ग्रहण किया गया और प्रशिक्षण, स्थानीय स्तर पर समूह को ऋण एवं बाजार की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु प्रयास शुरू किए गए। प्रारंभ मे कुल तीन समूह, हरियाली, ज्ञान गंगा और गीता समूह यह कार्य करने लगे। 2019 में छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प बोर्ड का आगमन हुआ और उनकी तरफ से 12 महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया। सर्वप्रथम बिहान मेला में टोकरी की प्रदर्शिनी लगाई गई जिसमे कोटानपानी ग्राम से लक्ष्मी पैंकरा और रिंकी यादव, बिहान के क्षेत्रीय समन्वयक आशीष तिर्की इस मेला मे सम्मिलित हुए। आज छिंद कांसा टोकरी की पहचान सारे भारत वर्ष मे है। मुख्यमंत्री और जिला प्रशासन के सतत प्रयास से महिलायें अच्छा उत्पादन एवं विक्री कर लखपति दीदियाँ बन चुकी है। जिला प्रशासन, एनआरएलएम एवं छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प बोर्ड के माध्यम से लगभग 15 समूह की महिलाओं को प्रशिक्षण प्रदान कर एवं 100 से ज्यादा महिलाओं को रोजगार से जोड़ा गया है। अब इन्हें इनके कार्य को सम्मान और पहचान दिलवाना है।

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