रायपुर। भगवान बिरसा मुंडा की जन्म जयंती को आज पूरा देश जनजाति गौरव दिवस के रूप में मना रहा है। छत्तीसगढ़ के जशपुर में ऐसी ही एक जनजाति निवास करती है बिरहोर.. इसी बिरहोर जनजाति को आगे बढ़ाने के लिए जशपुर के जागेश्वर यादव ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उन्हें हाल ही में साल 2024 के पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। जागेश्वर ने पिछड़ी जनजाति के बच्चों की शिक्षा के लिए विशेष रूप से कार्य किया है। दरअसल जागेश्वर यादव महकुल यादव जाति के हैं। युवावस्था के दिनों में जब पहली बार वे बिरहोर जनजाति के संपर्क में आए तो इस विशेष पिछड़ी जनजाति की खराब स्थिति ने उन्हें बेहद दुखी कर दिया। उनकी स्थिति देखकर वह दुनियादारी से अलग हो गए। वे झोपड़ी में रहते थे। स्वास्थ्य सुविधा का भी अभाव था। लेकिन इन सब के बाद भी उन्होंने संकल्प लिया कि वे अपना पूरा जीवन बिरहोर जनजाति के सुधार में लगाएंगे।
साय के संपर्क में आए
यह बहुत बड़ा मिशन था और इसके लिए उन्होंने अपनी ही तरह के संवेदनशील लोगों से संपर्क शुरू किया। इसके चलते वे तत्कालीन सांसद विष्णु देव साय के संपर्क में आये। यादव ने उनके सामने इस जनजाति के विकास के लिए योजना रखी। तब सांसद ने उन्हें पूरा सहयोग देने के लिए आश्वस्त किया। इसके बाद सांसद साय के सहयोग से यादव ने भीतघरा और धरमजयगढ़ में आश्रम खोले।
बच्चों के परिजन देर से माने
बताते हैं जब आश्रम शुरू हुआ तब लोग आश्रम से अपने बच्चों को घर ले जाते थे, लेकिन जब आश्रम में पहली पीढ़ी के बच्चे पढक़र निकले और उनके जीवन में सुखद बदलाव आये तो बिरहोरों ने अपने बच्चों को यहां भेजना शुरू किया। बिरहोर जाति के उत्थान के लिए राज्य अलंकरण समारोह में उन्हें शहीद वीर नारायण सिंह पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
सीएम से नंगे पांव मिलने पहुंचे
जागेश्वर और मुख्यमंत्री साय के बीच मुलाकात प्रदेश के अति पिछड़ी जनजाति मानी जाने वाली बिरहोर जनजाति की वजह से हुई। साय जब छत्तीसगढ़ के सीएम बने तब जागेश्वर उनसे मिलने नंगे पांव ही राज्य अतिथि गृह पहुंचे। मुख्यमंत्री ने उन्हें जब दूर से देखा तो आत्मीयता से आवाज लगाई कि ‘ऊहां कहां खड़े हस, एती आ’।
विशेष पिछड़ी जनजाति बिरहोर की सेवा के लिए जागेश्वर ने समर्पित कर दिया पूरा जीवन
