रायगढ़। छत्तीसगढ़ चुनाव को लेकर गहमागहमी शुरू है और भाजपा ने 21 प्रत्याशियों की लिस्ट जारी कर दिया है और लगभग 42 सीटों की घोषणा बहुत जल्द होनी है। बताया जाता है कि इसमें रायगढ़ का भी नाम शामिल है और यहां से पूर्व आईएएस व भाजपा के कद्दावर नेता ओपी चौधरी का चुनाव लडऩा तय माना जा रहा है। उनके समर्थकों ने इसकी बकायदा तैयारी भी शुरू कर दी है।
2018 के विधान सभा चुनाव से पहले कलेक्टरी छोडक़र सबको चौंकाते हुए ओपी चौधरी ने भाजपा ज्वाइन किया था और कांग्रेस का अजेय गढ़ माना जाने वाला विधानसभा क्षेत्र खरसिया से धांसू एंट्री की थी। कांग्रेस का गढ़ माना जानेवाला खरसिया, जहां से कांग्रेस एकतरफा जीतती थी वहां अचानक भूचाल आ गया और कांग्रेस की सीट खिसकती नजर आने लगी। इस सीट पर हार जीत के लिए दांव खेले जाने लगे और सट्टा बाजार ने भी इस स्थिति का भरपूर फायदा उठाया। इस सीट पर मतदाता बुरी तरह बांट गए थे। इसे पहले 32 हजार वोटों से चुनाव जीतने वाले उमेश पटेल हराने के कगार पर पहुंच गए थे। उनके साथ बड़ा जनसमूह था लेकिन चुनाव और क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है और इस चुनाव के परिणाम अंतिम में बदल गए।
दरअसल ओपी चौधरी बुद्धिमान, तेज और मंजे हुए अधिकारी तो थे लेकिन राजनीति के दांव पेंच से अनभिज्ञ थे। इसमें कौन सी बात का क्या अर्थ निकाल लिया जाएगा इससे परिचित नहीं थे। ऐसे में उनके एक बयान ‘कहर बनकर टूटूंगा’ और एक कांग्रेसी कार्यकर्ता से झड़प को विरोधियों ने हवा दे दी और कहा जाता है कि ये दोनों बातें ओपी चौधरी के विरुद्ध गई और खरसिया की सीट इनके हाथ से निकल गई। वहां इन्हें हार का सामना करना पड़ा। लेकिन इस बार राजनीति का 5 साल का अनुभव भी है।
रायगढ़ सीट कितना सुरक्षित
वैसे रायगढ़ सीट 2003 से चेहरे बदलने के लिए जाना जाता है। 2003 के बाद कोई भी विधायक दुबारा नहीं चुना जा सका। 2018 के चुनाव में प्रकाश नायक यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार बने और त्रिकोणीय संघर्ष में उन्होंने लगभग 16 हजार मतों के अंतर से जीत हासिल की थी। इसके बाद लोकसभा चुनाव में रायगढ़ विधानसभा क्षेत्र से भाजपा ने भारी अंतर से लीड लिया था। हालांकि बाद में हुए नगर निगम चुनाव और जिला पंचायत चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा। कांग्रेस में बिखराव की बात कही जा रही है लेकिन यदि ओपी चौधरी चुनाव लड़ते हैं तब परिस्थितियां बदल सकती हैं। हालांकि अभी कांग्रेस ने यहां की टिकट फाइनल नहीं की है लेकिन कांग्रेस ओपी चौधरी के नाम से न सिर्फ एकजुट होने लगी है बल्कि आक्रामक तेवर दिखाने को भी तैयार है, ओपी चौधरी के चुनाव लडने से यह सीट हॉट सीट बन जायेगी और कांग्रेस आलाकमान के अनुशासन का डंडा भी चलेगा ताकि पार्टी एकजुट दिखे। कांग्रेस भी ओपी चौधरी के खिलाफ अलग से रणनीति बनाएगी। हालांकि बातचीत में कोई कांग्रेसी ओपी चौधरी को पार्टी के लिए बड़ा थ्रेट अभी मानने को तैयार नहीं है।
रायगढ़ के राजनीति में बड़ा बदलाव
भाजपा ने अब तक रायगढ़ में अग्रवाल समाज को ही नेतृत्व करने दिया है। 2008 से पहले कांग्रेस ने भी कुछेक अपवादों को छोडक़र इन्हें नेतृत्व के लिए आगे बढ़ाया था लेकिन 2008 में कांग्रेस में यह परंपरा टूट गई तो यह समाज लगभग पूरी तरह भाजपा की ओर चला गया। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में ओपी चौधरी के आने के बाद इस समाज के हाथ से इस पार्टी का भी ताना बाना निकल जायेगा। रायगढ़ की राजनीति में यह एक बड़ा बदलाव है, इसे क्या अग्रवाल समाज स्वीकार कर लेगा ? क्योंकि वैसे भी इनके हाथ में प्रदेश की दो चार सीटें ही रह गई है। ऐसे में ओपी चौधरी के लिए यह सीट कितना सुरक्षित है ? लोगों की मानें तो इनका नेतृत्व फिलहाल अग्रवाल समाज के लोग सहजता से स्वीकार करने की स्थिति में नहीं हैं।
भाजपा में दो फाड़
भाजपा में एक कुनबा ओपी चौधरी को आगे लाना चाहता है और वह इस राजनीतिक परिदृश्य के बड़े बदलाव का साक्षी बनना चाहता है लेकिन एक बड़ा धड़्ा इसके लिए तैयार नहीं है। पार्टी के रूप में बाहर से जितनी एकजुटता दिखती हो लेकिन इस मामले पर पार्टी बुरी तरह बंटी हुई है। कुछ दिन पहले आए पर्यवेक्षक के सामने भी कुछ लोगों ने यह बोलकर विरोध किया कि यहां बड़े नेता को टिकट नहीं दिया जाए, हालांकि उसका असर होता नहीं दिख रहा है।
अधिकारी वर्सेज नेता
आम लोगों में यह बात स्प्रेड की जा रही है कि नेता काम करता है अधिकारी नहीं। नेता, नेता चाहता है, अफसर नहीं, यह पंच लाइन कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टी के लोग बोलते दिख रहे हैं। ओपी चौधरी को नेता के बजाए अधिकारी के तौर पर इमेज बनाने की कोशिशें शुरू हो गई है। लोग अजीत जोगी के साथ इनकी तुलना कर रहे हैं, ऐसे में अभी से ओपी चौधरी को इनका काट ढूंढना होगा अन्यथा बहुत कठिन है डगर पनघट की। बहरहाल, कई लोग ऐसे भी हैं वेट एंड वॉच की नीति पर चल रहे हैं। अभी तक कांग्रेस ने कोई पत्ते नहीं खोले हैं। कई लोगों का मानना है कि भाजपा के टिकट की घोषणा के बाद कांग्रेस भी अपनी रणनीति बदल सकती है। हालांकि टिकट की घोषणा के बाद समीकरण का बनना बिगडऩा लगा रहेगा लेकिन ओपी चौधरी कोई सीट पर लडऩा है तो काफी चौकन्ना रहना होगा क्योंकि यहां यह पता कर पाना मुश्किल होगा कि कौन उनका अपना है और कौन पराया।
ओपी का नाम आते ही खिल जाती हैं कांग्रेसियों की बांछे
विधानसभा चुनाव के संभावित प्रत्याशियों को लेकर भाजपा और कांग्रेस घमासान मचा है। एकतरफ कांग्रेस जहां रायगढ़ सीट को किसी भी स्थिति में हाथ से नहीं जाने देना चाह रही है। वहीं भाजपा हर हाल में जिला मुख्यालय की इस सीट को हथियाने के फिराक में है। यही वजह है कि भाजपा इस सीट के लिए तीन संभावित प्रत्याशियों के नाम में पूर्व आईएएस ओपी चौधरी को टाप पर रखा है। बहुत उम्मीद है कि इस नाम पर अंतिम निर्णय ले सकती है। इस खबर से कांग्रेस में खुशी की लहर है। राजनीति के जानकार इसे अप्रत्याशित मान रहे हैं। इसे लेकर तरह तरह के कयास भी लगाए जा रहे हैं।
दरअसल पिछले विधानसभा चुनाव में रायगढ़ जिले की सभी सीटों पर मिली करारी हार के बाद से भाजपा इसी उधेड़बुन में है कि इस गढ़ को कैसे फतह किया जाए। बताया जाता है कि भाजपा की पहली प्राथमिकता जिला मुख्यालय की रायगढ़ को जीतने की है। जिससे वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में खरसिया से हार का मुंह देख चुके ओपी चौधरी को रायगढ़ से आजमाना चाह रही है। भाजपा के हिसाब से जातीय समीकरण में ओपी चौधरी इस सीट से फिट बैठ रहें हैं। रायगढ़ के कांग्रेस विधायक प्रकाश नायक भी इसी वर्ग से हैं,जो पिछला चुनाव जीतने में कामयाब रहे। भाजपा को इस बात पर भी भरोसा है कि पिछले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी और भाजपा से बागी प्रत्याशी के मिले वोट कांग्रेस प्रत्याशी के वोट से अधिक रहें हैं। ऐसी स्थिति में रायगढ़ सीट पर भाजपा इस बार अपनी जीत सुनिश्चित मान रही है, लेकिन भाजपा की इस रणनीति से कांग्रेस में खुशी की लहर है। बताया जाता है कि कांग्रेस भी चाह रही है कि ओपी चौधरी को रायगढ़ से मैदान में उतारा जाए। और इसका फायदा कांग्रेस को मिले, कांग्रेस के संभावित दावेदार मान रहे हैं कि खरसिया विधानसभा क्षेत्र से आयातित प्रत्याशी ओपी चौधरी के आने पर कांग्रेस की जीत और आसान हो जाएगी। राजनीति के जानकार मानते हैं कि ओपी चौधरी के रायगढ़ से भाजपा के प्रत्याशी होने पर कांग्रेस को आयातित प्रत्याशी का नया मुद्दा मिल जाएगा। साथ ही कांग्रेस इस बात का भी लाभ लेना चाहेगी कि रायगढ़ विधानसभा क्षेत्र में बीते वर्षों में भाजपा के ओपी चौधरी की कितनी सक्रियता रही। छत्तीसगढ़ गठन के बाद से लोगों में इस बात की धारणा है कि विधायक तो स्थानीय हो, इसके अलावा सरल और सुलभ रूप से आमजनता उनसे मिल सकें। ऐसे मुद्दों को लेकर कांग्रेस मैदान जीतना चाहेगी,और ओपी के रायगढ़ सीट से भाजपा प्रत्याशी होने का कांग्रेस बेसब्री से इंतजार कर रहे। यह भी माना जा रहा है कि रायगढ़ विधायक प्रकाश नायक पिछड़े वर्ग से हैं और जातीय समीकरण का लाभ स्थानीय होने की वजह से प्रकाश नायक को मिलना स्वाभाविक है। बहरहाल रायगढ़ सीट से भाजपा प्रत्याशी की घोषणा को लेकर जितनी बेसब्री भाजपा में है, उससे कहीं अधिक उत्सुकता कांग्रेस में है।
कोलता समाज को भी साधना पड़ेगा!
अगर रायगढ़ सीट से भाजपा ओपी चौधरी को आजमाने का इरादा रखती है तो भाजपा को इस सीट के जातीय समीकरण पर भी गौर करना जरूरी लगता है। सरिया और रायगढ़ पूर्वांचल में कोलता समाज का बड़ा वोट बैंक है। भाजपा से टिकट के लिए इस समाज से लगातार दावेदारी की जा रही है, लेकिन सफलता अब तक नहीं मिली है। ओपी चौधरी के प्रत्याशी होने पर इस बड़े वोट बैंक को साधने भाजपा क्या रणनीति बनाएगी,यह भी गौर करने वाली बात है।