घरघोड़ा। बीते कुछ वर्षों में अपराध बड़ी तेज़ी से बढ़ा है,आये दिन ऐसी ऐसी जघन्य घटनाएं घट रही हैं जिनके बारे में सुन कर ही इंसान की आत्मा कांप जाये। आश्चर्य की बात तो ये कि इनमें से अधिकांश में युवा संलिप्त हैं और अपराध की श्रेणी इतनी भयावह है कि आप और हम समाज के होते पतन को देख रहे हैं और खुद की मजबूरी को कोस रहे हैं। सवाल यह है कि क्या केवल कोसने से कोई बदलाव होगा? आखिर इस अपराध की जड़े कहाँ हैं?और इसके फलने फूलनें की वजह क्या है और इसे रोकने की क्या गुंजाइशें हैं।यदि इस लेख का विस्तार देखें तो आप सभी ने महसूस किया होगा कि असुरक्षा की भावना अब हमारे भीतर कुछ ज्यादा आ गई है,दिन दहाड़े होते अपराध मन में घर कर रहे हैं,निर्दोष जान गवा रहे हैं और जब ये खबरें अख़बार में प्रकाशित होती हैं तो एक भय एक अराजकता का माहौल बन जाता है जैसा की आज हम देख और महसूस कर रहे हैं।ऐसा नहीं की कानून सख्त नहीं,ऐसा भी नहीं की कानून का डर नहीं और ऐसा भी नहीं की अपराधी इस से वाकिफ नहीं,तो फिर ऐसा कौन सा कारण है जो अपराधियों में निडरता ला रहा है।जब सब कुछ सहीं है तो फिर लचीला क्या है?क्या कानून के रखवाले ईमानदारी से रखवाली नहीं कर रहे?गहन और सोचनीय विषय है।आइये विस्तार से समझते हैं अपराध की शाखाओ को और इसपर पल रहे जीवन को।
आज जितने भी अपराध हो रहे हैं प्राय: व्यक्ति नशे में होता है,या ऐसे किसी नशे की लत में होता है जिस से वो बाहर नहीं आ सकता।और इसके लिए उसे पैसों की ज़रूरत होती है,जिसके लिए वो किसी भी हद तक जा सकता है और अपराध को अंजाम दे सकता है,चोरी,लूट,डकैती,बलात्कार जैसी घटनाओं में संलिप्त अपराधी प्राय: इस लत का शिकार ज़रूर होता है।बचपन की किसी बड़ी घटना या व्यवहार का असर प्रत्येक व्यक्ति पर होता है,प्राय: ये घटनायें हमें उबरने की शिक्षा देती हैं और एक स्वस्थ्य जीवन की ओर बढ़ाती है पर क्या हो यदि इन घटनाओं में कोई ऐसी प्रेरणा छुपी हो जो एक अपराधी का निर्माण करे!जी हाँ माता पिता या परिवार के सदस्यों का बुरा बर्ताव मानसिक विकृति का मुख्य कारण है और ऐसा अपराधी बड़ा ही शातिर और निरंकुश होते हैं।यदि इस तरह के अपराध से लडऩा है तो बच्चों के साथ अच्छा बर्ताव हो ये हमें सुनिश्चित करना होगा।महिलाओं के प्रति बढ़ता अपराध आज सम्पूर्ण विश्व में एक बड़ी समस्या बन चुका है,जन्मजात बच्चियों से ले कर एक अधेड़ उम्र की महिला सुरक्षित नहीं क्या यह हमारा सामाजिक पतन नहीं?खास तौर पर भारत जैसे देश में जहाँ धरती,नदी और स्वयं नारी को नारायणी का दर्जा प्राप्त है,जहाँ नवरात्रि में नवदुर्गा की पूजा की जाती है क्या ऐसे देश में अबोध बच्चियों के साथ बलात्कार जैसे अपराध सनातन संस्कृति पर कालिख नहीं लगाते? इन अपराधों की श्रेणी लिखते लिखते तो न जाने कितनी कलमें घिस गईं और कितनी पीढिय़ाँ जागरूकता का दिया जलाते जलाते बुझ गईं पर अंकुश नहीं लगाया जा सका।
अपराध,जागरूकता और कानून की लड़ाई कोई नई नहीं बड़ी पुरानी है।कभी कभी ये सब एक ही थाल में परोसे मिलते हैं और कभी कभी सार्थक प्रयासों से अपराध को दबा जाते हैं।इन सब में सब से मुख्य है जागरूकता जिसे यदि ईमानदार प्रयास से किया जाये तो अपराध होने की संभावनाएं कम होंगी,कानून पर आज लोगों के कई तर्क हैं,कई तो इन्हें ही अपराधी कहने से नहीं चूकते और साँटगाट जैसे शब्द उभर कर आते हैं,खैर कानून का डर बहुत ज्यादा ज़रूरी है,और यह सर्वस्वीकार्य सत्य है।युवा देश का भविष्य हैं यदि भविष्य बिगड़ा तो सब कुछ बिगड़ा समझिये इस लिए प्रयास केवल सरकार और कानून पर मत छोडिय़े परिवारिक स्तर पर और सामाजिक स्तर पर नशे और परिस्थिति वश बनते अपराधियों को समय रहते हम संभाल लें इस से बड़ी देश सेवा क्या होगी।
कविता शर्मा
घरघोड़ा
आखिर क्यों बढ़ रहे हैं अपराध?
