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NavinKadam > छत्तीसगढ़ > ई कुबेर सिस्टम से लगा विकास कार्यों में ब्रेक
छत्तीसगढ़

ई कुबेर सिस्टम से लगा विकास कार्यों में ब्रेक

नगद भुगतान की मांग करते हैं सरगुजा संभाग के मजदूर

lochan Gupta
Last updated: September 29, 2024 12:02 am
By lochan Gupta September 29, 2024
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9 Min Read

कोरिया। शासन की योजनाएं वैसे तो लोगों के हितों और सुविधाओं को ध्यान में रखकर बनाई जाती है मगर कभी-कभी व्यवहारिक दृष्टि से अनदेखी के कारण योजना की सफलता तो संदिग्ध हो जाती, ऐसा ही एक सिस्टम या कहा जाए व्यवस्था बनाई गई है एकई कुबेर सिस्टम से लगा विकास कार्यों में ब्रेक।
नगद भुगतान की मांग करते हैं सरगुजा संभाग के मजदूर शासन की योजनाएं वैसे तो लोगों के हितों और सुविधाओं को ध्यान में रखकर बनाई जाती है मगर कभी-कभी व्यवहारिक दृष्टि से अनदेखी के कारण योजना की सफलता तो संदिग्ध हो जाती, ऐसा ही एक सिस्टम या कहा जाए व्यवस्था बनाई गई है एक कुबेर भुगतान व्यवस्था जो वन विभाग में काम करने वाले हजारों मजदूरों के लिए परेशानी का कारण बन गया है।
सरगुजा संभाग आदिवासी बहुमूल्य क्षेत्र है यहां का मूल निवासी गहन जंगलों में निवास करता है जिसकी आजीविका का साधन या वन उपज है या फिर वन विभाग द्वारा गहन जंगलों में कराए जाने वाले विकास कार्यों जो मूलत आदिवासियों के विकास उनकी सुविधा उनके उत्थान के उद्देश्य से ही कराए जाते हैं इन कामों का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है वन विभाग में उन्हें बताओ और मजदूरी मिलने वाला रोजगार जो इन आदिवासियों के परिवार की अर्थव्यवस्था का मूल आधार है। पिछले अप्रैल माह से राज्य सरकार ने एक कुबेर नामक एक भुगतान सिस्टम प्रारंभ किया है अब इन मजदूरों को नगद भुगतान न करके सीधे बैंकों में पैसा भेजा जाएगा जिससे यह मजदूर बैंक जाकर विड्रोल कर सकेंगे सरगुजा संभाग के आदिवासी मजदूर जिले के लगभग 40 से 50 किलोमीटर दूर जंगलों में निवासरत हैं वहां से आकर जिला मुख्यालय में पैसा निकालना मजदूरों के लिए किसी से विड्रोल भरवाना एवं बैंकों में लाइन लगाकर खड़ा होना एवं बैंक का कवि सर्वर डाउन होना एवं बैंक में कभी कैश न होना एवं बैंकों में हजारों की संख्या में भीड़ लगा उसे भीड़ में आदिवासी मजदूरियों मजदूरों का पैसा निकालना घंटा बैंक के सामने बैठा रहना बहुत कठिन परिस्थितियों का सामना करना पढ़ सकता है।
अब सरगुजा संभाग के कि मजदूरों द्वारा वन विभाग में काम करना ही मना लगे हैं, वन विभाग के कर्मचारियों को विकास कार्यों के लिए मजदूर ढूंढना भी एक समस्या बन गया है सूत्रों की माने तो महा अप्रैल से जो विकास कार्य अब 50 फ़ीसदी हो जानी चाहिए थे वह महज 10 प्रतिशत टीवी हो पाए हैं। सरगुजा संभाग के जिलों में लाखों मजदूरों को मजदूरी न मिलने के कारण आर्थिक दशा भी खराब होने लगी है ऐसी स्थिति में सरकार के प्रति उनकी नाराजगी स्वाभाविक है अब व्यवस्था लंबे समय तक बनी रहने के दुष्परिणाम भी सामने आ सकते हैं इधर पंचायत चुनाव की तैयारी में लगे हैं सत्ता दल के राजनेताओं को भी यह सिस्टम चुनाव में आदिवासियों के रोग का कारण बनता नजर आ रहा है। सरगुजा संभाग के वन विभाग भौगोलिक स्थिति यहां का संस्कृत पारिवारिक धार्मिक परिवेश सर्वथा विभिन्न है योजना बनाते समय इन बातों का ध्यान रखा जाता है प्रणाम स्वरूप या तो योजनाएं फेल हो जाती है या लोगों के लिए परेशानी का कारण बन जाती है पिछली सरकार ने भी गोठान और नरवा योजना लागू कर दी थी यह योजनाएं अर्बन कि भ्रष्टाचार के जरिया बन गई थी, अब इस कुबेर व्यवस्था ने हजारों आदिवासी मजदूर के लिए एक अलग-अलग समस्या खड़ी कर दी है हालांकि सरकार की सोच बेहतरीन है मगर सरगुजा संभाग के परीक्षा में यह व्यावहारिक नहीं है ऐसे सिस्टम या व्यवस्था के लिए अभी शैक्षणिक एवं सुविधाओं की दृष्टि से परिपक्व नहीं हुआ है सरगुजा की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए मजदूरों को नगद भुगतान की सुविधा मिलनी चाहिए इसमें स्थानीय जनप्रतिनिधियों की निगरानी में भुगतान एवं इसकी मॉनिटरिंग सही तरीके से की जानी चाहिए, ई कुबेर भुगतान व्यवस्था जो वन विभाग में काम करने वाले हजारों मजदूरों के लिए परेशानी का कारण बन गया है।
सरगुजा संभाग आदिवासी बहुमूल्य क्षेत्र है यहां का मूल निवासी गहन जंगलों में निवास है, जिसकी आजीविका का साधन या वनोउपज है या फिर वन विभाग द्वारा गहन जंगलों में कराए जाने वाले विकास कार्यों जो मूलत आदिवासियों के विकास उनकी सुविधा उनके उत्थान के उद्देश्य से ही कराए जाते हैं, इन कामों का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है वन विभाग में मजदूरी मिलने वाला रोजगार जो इन आदिवासियों के परिवार की अर्थव्यवस्था का मूल आधार है। पिछले अप्रैल माह से राज्य सरकार ने ई कुबेर नामक एक भुगतान सिस्टम प्रारंभ किया है, अब इन मजदूरों को नगद भुगतान न करके सीधे बैंकों में पैसा भेजा जाएगा जिससे यह मजदूर बैंक जाकर विड्रोल कर सकेंगे, सरगुजा संभाग के आदिवासी मजदूर जिले के लगभग 40 से 50 किलोमीटर दूर जंगलों में निवासरत हैं वहां से आकर जिला मुख्यालय में पैसा निकालना मजदूरों के लिए बहुत बड़ी परेशानी है, किसी से विड्रोल भरवाना, बैंकों में लाइन लगाकर खड़ा होना, बैंक का कभी सर्वर डाउन होना, एवं बैंक में कभी कैश न होना, एवं बैंकों में हजारों की संख्या में भीड़ लगा होना, उसे भीड़ में आदिवासी मजदूरों का पैसा निकालना घंटो बैंक के सामने बैठा रहना बहुत कठिन परिस्थितियों का सामना करना पढ़ सकता है।
अब सरगुजा संभाग के मजदूरों द्वारा वन विभाग में काम करना ही मना लगे हैं, वन विभाग के कर्मचारियों को विकास कार्यों के लिए मजदूर ढूंढना भी एक समस्या बन गया है, सूत्रों की माने तो महा अप्रैल से जो विकास कार्य अब 50 फ़ीसदी हो जानी चाहिए थे वह महज 10 प्रतिशत विकास कार्य हो पाए हैं। सरगुजा संभाग के जिलों में लाखों मजदूरों को मजदूरी न मिलने के कारण आर्थिक दशा भी खराब होने लगी है ऐसी स्थिति में सरकार के प्रति मजदूरों की नाराजगी स्वाभाविक है अव्यवस्था लंबे समय तक बनी रहने के दुष्परिणाम भी सामने आ सकते हैं इधर पंचायत चुनाव की तैयारी में लगे हैं सत्ता दल के राजनेताओं को भी यह सिस्टम चुनाव में आदिवासियों के नाराजगी का कारण बनता नजर आ रहा है। सरगुजा संभाग के वन विभाग भौगोलिक स्थिति यहां का सांस्कृतिक, पारिवारिक, धार्मिक परिवेश, सर्वथा विभिन्न है योजना बनाते समय इन बातों का ध्यान रखा जाता है प्रणाम स्वरूप या तो योजनाएं फेल हो जाती है या लोगों के लिए परेशानी का कारण बन जाती है पिछली सरकार ने भी गोठान और नरवा योजना लागू कर दी थी यह योजनाएं अरबों भ्रष्टाचार के जरिया बन गई थी, अब ई कुबेर व्यवस्था ने हजारों आदिवासी मजदूर के लिए एक अलग-अलग समस्या खड़ी कर दी है हालांकि सरकार की सोच बेहतरीन है मगर सरगुजा संभाग के परिवेश में यह व्यावहारिक नहीं है ऐसे सिस्टम या व्यवस्था के लिए अभी शैक्षणिक एवं सुविधाओं की दृष्टि से परिपक्व नहीं हुआ है सरगुजा की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए मजदूरों को नगद भुगतान की सुविधा मिलनी चाहिए इसमें स्थानीय जनप्रतिनिधियों की निगरानी में भुगतान एवं इसकी मॉनिटरिंग सही तरीके से की जानी चाहिए।

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