रायगढ़। खनन क्षेत्र में आदिवासियों की पहचान, अधिकार और आजीविका पर तीन दिवसीय चर्चा परीचर्चा का आयोजन तमनार स्थित साहू सदन में आयोजित किया गया यह आयोजन 26 जुलाई से 28 जुलाई तक चला जिसमें मुख्य रूप से झारखंड उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के खनन क्षेत्र के जागरूक लोग और प्रभावित लोग मौजूद रहे और अधिकतर जो खनन क्षेत्र है वह आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में होता है जहां जल जंगल जमीन की लूट होती है और इस लूट से मूलत: आदिवासी समुदाय को किस प्रकार से नुकसान उठाना पड़ता है इस विषय पर चर्चा हुई।
झारखंड छत्तीसगढ़ और उड़ीसा तीनों राज्य में कोयले की भंडार प्रचुर मात्रा में है और तीनों ही राज्य आदिवासी राज्य हैं साथ ही तीनों ही राज्य जंगलों से अधारित हैं और इन्हीं जंगलों के नीचे कोयले की भंडार है और इन कोयले के भंडार के लूट के लिए कारपोरेट जगत की पूंजीपति घराने अपनी तानाशाही दिखाते हैं और जल जंगल जमीन और इस चीजों को संग्रहित करने वाले और सुरक्षित रखने वाले समर्थित करने वाले आदिवासियों की हितों को नुकसान पहुंचाने की ताकत पर हमेशा लगे रहते हैं और पूरे क्षेत्र को बर्बाद करने के लिए तूले रहते हैं छत्तीसगढ़ के मुख्य रूप से रायगढ़ और कोरबा में किस तरह से मिनरल्स का दोहन और तरह-तरह की बीमारियां तरह-तरह की समस्याएं हैं इन समस्याओं को लेकर गहन चर्चा हुई और आगे इन क्षेत्रों को बचाने के लिए किस प्रकार से कार्य किया जाए इस कार्य पर योजना बनाई जा रही है ।
इस बैठक में झारखण्ड से डॉ. मिथिलेश कुमार डांगी, डॉ. टोनी पी.एम. दिप्ती मिंज, मंगलोर से दिप्ती पलापु, ओडिशा से केदारनाथ मुण्डारी, जितबाहन कांडाई बुरू, जनचेतना से राजेश त्रिपाठी, सविता रथ, शिव पटेल, राजेश गुप्ता, अमृत भगत, भोजमती राठिया, अक्षय नायक, ओमप्रकाश प्रधान, ओडिशा से बारतेंदी जी और सैकड़ों खनन प्रभावित लोग मौजूद रहे।
खनन क्षेत्र में आदिवासियों की पहचान पर हुई कार्यशाला
अधिकार व आजीविका पर तीन दिवसीय परिचर्चा का हुआ आयोजन
