रायगढ़। भारतीय शास्त्रीय नृत्य में ओडिसी नृत्य का खास स्थान है। इसकी शुरुआत ओडिशा में श्रीजगन्नाथ मंदिरों में भगवान श्रीजगन्नाथ को प्रसन्न करने के लिए हुई थी। भगवान कृष्ण के जीवन और अन्य पौराणिक कहानियों को इस नृत्य के जरिए दृशाया जाता है। इस नृत्य कला में भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़ी कथाओं को दर्शाया जाता है।
वहीं इस नृत्य शैली में चेहरे के हाव-भाव और अलग-अलग एक्सप्रेशन की मदद से पौराणिक कथाओं को प्रस्तुत किया जाता है। अलग-अलग दृश्य के लिए अलग-अलग भंगिमाओं का प्रयोग किया जाता है, ताकि दर्शक उस दृश्य से खुद को जोड़ पाएं।वहीं ओडिशा के स्थानीय मंदिर के शिलालेखों में भी इस नृत्य शैली का वर्णन मिलता है। विश्व प्रसिद्ध कोणार्क के सूर्य मंदिर में भी इस ओडिसी नृत्य का उल्लेख मिलता है। इस नृत्य में अभिनय की बेहद खास भूमिका होती है। इसलिए इस नृत्य में त्रिभंग पर खास ध्यान दिया जाता है। त्रिभंग एक ऐसी मुद्रा होती है, जिसमें शरीर को तीन अलग-अलग भागों में बांटा जाता है। सिर, शरीर का मध्य भाग और पैर को अलग-अलग दिशाओं में मोड़ा जाता है। इससे उत्तपन होने वाली पोजिशन को त्रिभंग कहा जाता है।
सौम्या ने दी मनभावन प्रस्तुति
इसी परंपरानुसार रायगढ के रियासत कालीन श्री जगन्नाथ मंदिर में देवस्नान को भगवान के अनसर में जाने के पूर्व भगवान को छप्पन भोग लगाया गया एवं प्रतिवर्षानुसार संध्या उनके प्रिय हेतु ओडिसी नृत्य की प्रस्तुति गुरू देवेन्द्र नाथ बेहरा एवं उनके शिष्यों तथा रायगढ की उत्कृष्ट ओडिसी कलाकार सौम्या षड़ंगी द्वारा श्री कृष्ण के बाल लीलाओं की प्रस्तुति दी। इस अवसर पर गणमान्य अतिथियों में राजा देवेन्द्र प्रताप सिंह, राज्य सभा सदस्य, डॉ प्रकाश मिश्रा, प्रताप राउत, आर कें एम इंडस्ट्रीज के प्रमुख व सैकड़ों लोगों ने इन मनमोहक ओडि़सी नृत्य का आनंद उठाया। तत्पश्चात सभी कलाकारों को उत्कल सांस्कृतिक सेवा समिति द्वारा राज्य सभा सांसद राजा देवेन्द्र प्रताप सिंह के हाथों सम्मान किया गया।
नृत्यांगना सौम्या षड़ंगी ने दी यादगार प्रस्तुति
श्री जगन्नाथ मंदिरों में ओडिसी नृत्य की विशेष परंपरा
