सारंगढ़। होली के 7 दिन बाद या होली के बाद पडऩे वाली पहले सोमवार को मां शीतला की पूजन होती है। कुछ लोग शीतला अष्टमी भी मनाते हैं। शीतला सप्तमी को बासौड़ा भी कहा जाता है। इस दिन माता शीतला की पूजा की जाती है, बासौड़े पर शीतला माता को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। माता का प्रसाद एक दिन पहले रविवार को तैयार करके रख लेते हैं, दूसरे दिन सोमवार को प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त हो माता शीतला मंदिर जाकर पूजन कर प्रसाद का भोग लगाया गया। इस दिन बासी खाने का भोग माता शीतला को लगाया जाता है। शीतला माता ठंडक प्रदान करने वाली देवी है। होली के बाद मौसम में बदलाव आता है। हल्की ठंड भी खत्म होने लगती है और गीष्म ऋतु का आगमन होता है। ऐसे में वातावरण में ठंडक की आवश्यकता होती है क्योंकि – भीषण गर्मी में त्वचा संबंधी रोग का खतरा बना रहता है ।
इस कारण मान्यता है कि – माता शीतला का व्रत रखने और विधिवत पूजा करने से महामारी जैसे बीमारियां दूर रहती हैं । शीतला माता का आशीर्वाद परिवार पर बना रहता है। पूरा परिवार सूर्य निकलने से पहले बासौड़ा धौंक लेते हैं तो इसका महत्व और भी बढ़़ जाता है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्न्नान ठंडा पानी से कर लें। इसके बाद माता शीतला के मंदिर में जाकर विधि-विधान के साथ बासौड़ा पूजते हैं।
सबसे पहले माता शीतला की पूजा करें। उन्हें जल चढ़ाएं, इसके बाद गुलाल, कुमकुम अर्पित करें। इसके बाद बासी भोजन जैसे पूडे,मीठे चावल, खीर, मिठाई का भोग माता शीतला को लगाया गया। सीता केजरीवाल ने बताया कि – बासौड़ा पूजते समय 3 बातों का खास ख्याल रखें माता शीतला को हमेशा ठंडे खाने का भोग ही लगाया जाता है। मां शीतला की पूजा करते समय दीया, धूप अगरबत्ती नहीं जलानी चाहिए । शीतला माता की पूजा में अग्नि को किसी भी तरह से शामिल नहीं किया जाता है। शीतला मंदिर से घर वापस आकर प्रवेश द्वार के बाहर स्वास्तिक का चिन्ह हल्दी से बनाते है।
बासौड़ा पूजन कर बासी खाये अग्रजन
