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Reading: रामायण हमें जीने की कला सिखाती है : आ.दीपक कृष्ण
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NavinKadam > खरसिया > रामायण हमें जीने की कला सिखाती है : आ.दीपक कृष्ण
खरसिया

रामायण हमें जीने की कला सिखाती है : आ.दीपक कृष्ण

lochan Gupta
Last updated: February 16, 2024 12:06 am
By lochan Gupta February 16, 2024
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2 Min Read

खरसिया। ग्राम दर्रामुड़ा में पटैल परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में आचार्य दीपककृष्ण ने बुधवार को परीक्षित जन्म व विदुर मैत्री की कथा का वाचन किया। कहा कि जीवन जीने की कला सीखनी है तो श्री रामायण से सीखो और मरना सीखना है तो भागवत गीता से सीखो। आचार्य ने कहा कि त्रिवेणी संगम में गंगा, जमुना और सरस्वती का मिलन होता है। मिलन में गंगा जमुना तो दिखाई देती हैं, लेकिन सरस्वती को कोई नहीं देख पाता, सरस्वती को देखने के लिए कई बार प्रयास करने पड़ते हैं। इसी तरह गीता में विज्ञान, वैराग्य और भक्ति है, लेकिन विज्ञान और वैराग्य तो दिखाई देता है, लेकिन भक्ति नहीं दिखाई देती। भक्ति को देखने के लिए लीन होना पड़ता है। इसके अलावा व्यास नारद संवाद परीक्षित जन्म वक्ता के दस लक्षण, रसिका भूवि भाविका, कुंती चरित्र, विदुर मैत्री प्रसंग की कथा श्रवण कराई। आचार्य दीपककृष्ण ने कहा कि हमेशा मधुर वचन बोलो, वाणी के सुर सुधार लो, जिस तरह कौवा दिन भर कांव-कांव करता है, लेकिन कोई नहीं सुनता वहीं कोयल बोलती है तो सब ध्यान से सुनते हैं। इसलिए कोयल बनो कौवा नहीं। जीव का कल्याण भगवत भजन से होगा क्योंकि जीव का जन्म प्रभु की भक्ति के लिए हुआ है, प्रभु का भजन जो जीव नहीं करता है पशु के समान होता है। अगर कल्याण चाहते हैं तो जन्म मरण के चक्कर से बचना चाहते हैं तो हरी भजों, भगवान का भजन ही सार है बांकी सब बेकार है।

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