जशपुरनगर। जशपुर जिले के रहने वाले जागेश्वर यादव का नाम 2024 के पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयनित हुआ है। जागेश्वर यादव के पद्मश्री अवॉर्ड के लिए चयनित होने के बाद से उनके घर-गांव खासकर बिरहोर और विशेष पिछड़ी जनजाति बाहुल्य ग्रामों में खुशी का माहौल है।
साथ ही बधाई देने के लिए भारी संख्या में लोग उनके घर पहुंच रहे हैं। भितघरा गांव के निवासी खुशी से झूम-नाच रहे हैं। जब जशपुर से जागेश्वर यादव अपने गांव पहुंचे, तो उनका उत्साह से लोगों ने स्वागत किया। पारंपरिक गीत-नृत्य के साथ उनके घर तक नाचते-गाते हुए उन्हें घर पहुंचाया गया।
बिरहोर आदिवासियों के उत्थान के लिए किया काम
जिले के बिरहोर आदिवासियों के उत्थान के लिए बेहतर काम के लिए जागेश्वर यादव को यह अवॉर्ड दिया जाएगा। बगीचा ब्लॉक के भितघरा गांव में पहाडिय़ों और जंगल के बीच रहने वाले जागेश्वर यादव 1989 से ही बिरहोर जनजाति के लिए काम कर रहे हैं।
जागेश्वर यादव ने जशपुर में आश्रम की स्थापना की है
उन्होंने इसके लिए जशपुर में एक आश्रम की स्थापना की है, साथ ही शिविर लगाकर निरक्षरता को खत्म करने और स्वास्थ्य व्यवस्था लोगों तक पहुंचाने के लिए कड़ी मेहनत की है। उनके प्रयासों का नतीजा था कि कोरोना के दौरान लोगों को टीकाकरण की सुविधा मुहैया कराई जा सकी। इसके अलावा शिशु मृत्यु दर को कम करने में भी मदद मिली।
आदिवासी समाज के लिए समर्पित हैं जागेश्वर
जागेश्वर यादव का पूरा जीवन आदिवासी समाज के लिए समर्पित है। उन्होंने हाशिए पर पड़े बिरहोर और पहाड़ी कोरवा लोगों के लिए बहुत काम किया। उन्होंने जशपुर में आश्रम की स्थापना की और निरक्षरता को खत्म करने के साथ-साथ आदिवासियों तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाईं।
कोरोना के दौरान जागेश्वर ने आदिवासियों को वैक्सीन लगवाई। इन कामों में आर्थिक तंगी तो आड़े आई, लेकिन इसके बावजूद जागेश्वर यादव ने कभी भी सेवा में कमी नहीं आने दी। अपने अथक प्रयासों से वो बिरहोर के भाई बन गए।
जागेश्वर यादव का जन्म जशपुर जिले के भितघरा में हुआ था। बचपन से ही इन्होंने बिरहोर आदिवासियों की दुर्दशा देखी। घने जंगलों में रहने वाले बिरहोर आदिवासी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार से वंचित थे। जागेश्वर ने इनका जीवन बदलने का फैसला लिया। इसके लिए सबसे पहले उन्होंने आदिवासियों के बीच रहना शुरू किया। उनकी भाषा और संस्कृति को सीखा। इसके बाद उनमें शिक्षा की अलख जगाई और स्कूलों में जाने के लिए प्रोत्साहित किया।
जागेश्वर यादव ‘बिरहोर के भाई’ के नाम से चर्चित हैं। हाल ही में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने उन्हें बुलाया था, तो वो उनसे मिलने नंगे पांव ही चले गए थे। जागेश्वर को 2015 में शहीद वीर नारायण सिंह सम्मान भी मिल चुका है।
जागेश्वर बताते हैं कि पहले बिरहोर जनजाति के बच्चे लोगों से मिलते-जुलते नहीं थे। बाहरी लोगों को देखते ही भाग जाते थे। इतना ही नहीं जूतों के निशान देखकर भी छिप जाते थे। ऐसे में पढ़ाई के लिए स्कूल जाना तो बड़ी दूर की बात थी। लेकिन अब समय बदल गया है। जागेश्वर यादव के प्रयासों से अब इस जनजाति के बच्चे भी स्कूल जाते हैं।
पद्मश्री की घोषणा के बाद जागेश्वर यादव का स्वागत
ग्रामीणों ने गाजे-बाजे के साथ पहुंचाया घर, बिरहोर आदिवासियों के उत्थान में लगा दी जिंदगी
