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NavinKadam > रायगढ़ > धान की फसल पर कीटों का खतरा, कृषि वैज्ञानिकों ने खेतों का दौरा कर बताए समाधान
रायगढ़

धान की फसल पर कीटों का खतरा, कृषि वैज्ञानिकों ने खेतों का दौरा कर बताए समाधान

lochan Gupta
Last updated: September 10, 2025 12:50 am
By lochan Gupta September 10, 2025
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7 Min Read

रायगढ़। जिले के किसानों को इस सीजन में धान की फसल पर विभिन्न कीटों के बढ़ते हमले से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। किसानों को जागरूक करने और फसल की रक्षा के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र रायगढ़ के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. बी.एस. राजपूत के कुशल मार्गदर्शन में केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ. के.के. पैकरा एवं डॉ. के.एल.पटेल द्वारा कृषि विज्ञान केंद्र रायगढ़ की टीम ने जिले के कई ग्रामों में भ्रमण कर धान की फसल में कीट प्रकोप का निरीक्षण किया। जिसमें तना छेदक, भूरा माहों, गंधी कीट एवं पेनिकल माईट आदि कीट का किसानों के धान खेत में आक्रमण पाया गया। इन कीटों के पहचान एवं समन्वित प्रबंधन इस प्रकार है।
तना छेदक-इस कीट की इल्ली फसल की सभी अवस्था को नुकसान पहँुचाती है। इल्ली कंसे वाली अवस्था मे मुख्य तने पर आक्रमण करती है जिससे तना खुल नहीं पाता है और भूरेपन में बदलकर सुखा तना बनाती है। बाली अवस्था में यही इल्ली बाली के निचले हिस्से को काटकर सुखी बालीयॉ बनाती हैं जिसमे पोंचे दाने हातेी है जो खीचंनें पर असानी से बाहर निकल जाती है वयस्क मादा कीट के आगे पंख पीलापन लिए बीच में गहरा काला निषान होता है जबकि नर कीट छोटे भरूे रगं के होते है जो 31-40 दिन में अपना एक जीवन चक्र पूर्ण कर लेती है एवं वर्ष में 4-5 पीढिय़ॉं पनपती है।
समन्वित प्रबंधन- प्रकाश प्रपंच लगाकर कीटों की उपस्थिति व संख्या सतत् निगरानी रखते हुए वयस्क कीटों को नष्ट कर दे। फिरोमोन ट्रेप 25 नग प्रति हेक्टेयर की दर से लगाएं व हर तीसरे सप्ताह पष्चात् सेप्टा बदलते रहें। अडंा समहू प्रति वर्ग मीटर या 10 प्रतिशत सूखा तना या 1 तितली प्रति वर्ग मीटर कीट प्रकोप होने पर दानेदार दवाईं फिपरोनिल 0.3 जी 20 किलो प्रति हेक्टेयर या क्लोरेटे्रनिलीप्रोल 4 जी 10 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से रेत मे मिलाकर धान की नर्सरी/कंसा/गभोट अवस्था के समय डाले या क्लोरेटे्रनिलीप्रोल 18.5 एस.सी को 150 मि.ली या फ्लबूेन्डामाइड 480 एस.सी को 250 मि.ली या फिपरोलिन 5: एस.सी को 1000 मि.ली प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में मिला कर छिडक़ ाव करे।
भूरा माहों-विपरीत परिस्थितियों मे इस कीट से 20-40 प्रतिशत तक फसल नुकसान का आंकलन किया गया है। इस कीट का प्रकोप कंसा अवस्था से बाली निकलने की अवस्था तक कीट के शिशु तथा व्यस्क पौधों के निचली सतह से रस चुसकर नुकसान पहँुचाती है। कीट प्रकोप की तीव्रता होने पर फसल गोलाई मे झुलसा हुआ सा प्रतित होता है।
समन्वित प्रबंधन-संतुलित मात्रा में भूमि के प्रकार एवं किस्मों की अवधि के अनुसार नत्रजन, स्फुर एवं पोटाष उर्वरकों को 3:2:1 में देवें। 10-20 भूरा माहों प्रति पौध गुच्छा कीट प्रकोप होने पर इमिडाक्लोप्रीड 17.8 एस. एल. को 250 मि.ली प्रति हेक्टेयर या ब्यूप्रोफेजिन 25: एससी को 1000 मि.ली. प्रति हेक्टेयर या डाइनेटोफ्यरू ान 20: एस.जी. 150-200 ग्राम प्रति हेक्टेयर या एसीटामिप्रिड 20: एस.पी. प्रति हेक्टेयर या ट्राइफ्लूमेजोपायरिम 10 एस.सी. का 235 मिली/हेक्टेयर या फ्लोनिकामिड 50 डब्लू. जी. का 150 ग्राम/हेक्टेयर की दर से 400-500 लीटर पानी में मिला कर, नोजल नीचे करते हुए सीधे कीटों (संपर्क विष) पर शाम के समय डालें।
गंधी कीट:-इस कीट की शिशु व प्रौढ़ अवस्था दोनों ही कोमल पत्तियों, तने एवं दध्ूिायावस्था में धान की बाली का रस चूसने के कारण धान की बालियों के दाने खोखले तथा हल्के हो जाते हैं एवं छिलके का रंग सफेद हो जाता है। धान की फसल को दुग्धावस्था (सितबंर-अक्टूबर) में सर्वाधिक 20-25 प्रतिषत नुकसान होता है। इस कीट का आक्रमण होने पर खेतों से अवांछित गंध निकलती है जिसके कारण इसे गंधी कीट के नाम से जानते हैं।
समन्वित प्रबंधन:-फसल क्षेत्र में प्रकाष प्रपंच लगाकर कीटों की उपस्थिति व संख्या सतत् निगरानी रखते हुए वयस्क कीटों को नष्ट कर दें। 15-20 बग या कीट प्रति वर्ग मीटर कीट प्रकोप होने पर एबामेंक्टिन 500 मिली या कार्बोरिल चूर्ण 30 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करें।
पेनिकल माईट:- पेनिकल माईट नग्न ऑखों से दिखाई नहीं देता हैं। पर्णच्छद के अंदर इसे देखने के लिए न्यनूतम 20 हाथ के लेस की आवश्यकता होती है तापमान के आधार पर 7-21 दिन मे एक सपंणर््ूा जीवन चक्र पूरा कर लेते हैं। यह कीट अंकुर से लेकर फसल पकने तक प्रत्यक्ष रूप से पत्ती षिरा, पर्णच्छद व दाने को नुकसान करता है एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोगजनकों को बढ़ावा देती है जिससे बॉझ अनाज सिड्रोंम ढीला एवं भुरा पर्णच्छद मुड़ा हुवा गर्दन, खाली या आंषिक भरे दाने के साथ भूरे रगं के धब्बे के साथ विकृत दाने का विकास होता है। पर्णच्छद के नुकसान से पौधे की प्रकाश संश्लेषण एवं प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
समन्वित प्रबंधन:- ग्रसित क्षेत्र मे फसल कटाई के बाद जुताई करें जिससे सर्दियों में फिर से नये पौधे न निकल पायें। ग्रसित क्षेत्रों मे धान के अलावा अन्य वैकल्पिक फसल को बदलकर लगायें। इसके लिए पहला छिडक़ाव गभोट आने के समय व दूसरा छिडक़ाव 2-3 बाली आने के स्थिति में हेक्साथियोजोक्स 5.45 प्रतिशत ईसी का 250 मि.ली. या प्रोपरजाइट 57 प्रतिशत ईसी का 500 मि.ली. या स्पायरोमेसिफेन 22.9 प्रतिशत एस.सी. का 150 मि.ली.या एबोमेक्टिन 1.8 प्रतिशत 100 मि.ली. प्रति एकड उपयोग करें। इनमें से किसी भी एक मकड़ीनाशक के साथ प्रोपीकोनाजोल 25 ईसी का 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी के साथ मिलाकर सुबह या शाम के समय छिडक़ाव करना चाहिए।

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