रायपुर। छत्तीसगढ़ शराब घोटाला मामले में प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी सोमवार को कांग्रेस के प्रदेश कार्यालय राजीव भवन पहुंचे। इस दौरान अधिकारियों ने संगठन के प्रभारी महामंत्री मलकीत सिंह गैदु को केस से संबंधित चालान की कॉपी दी। अधिकारी करीब 10 मिनट बाद राजीव भवन से बाहर निकले। कांग्रेस भवन में ईडी के अधिकारियों के आने पर मलकीत सिंह गैदु ने बताया कि, ईडी की ओर से सुकमा कांग्रेस भवन का मामला दिल्ली ट्रिब्यूनल में दायर किया गया था। ट्रिब्यूनल से नोटिस मिलने के बाद हमें 2 सितंबर को जवाब देना था। इसके बाद कांग्रेस की लीगल टीम ने मांग की थी कि हमारे पास केस से संबंधित कोई दस्तावेज नहीं हैं। हम इसका जवाब कैसे देंगे। इसके बाद ईडी के अधिकारियों ने केस से संबंधित चालान की कॉपी दी है। हमें कॉपी मिल गई है, अब ईडी के सभी सवालों के जवाब देंगे।
दरअसल, 28 दिसंबर 2024 को ईडी ने पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा, उनके बेटे हरीश कवासी के घर छापा मारा था। टीम रायपुर के धरमपुरा स्थित कवासी लखमा के बंगले पहुंची थी। पूर्व मंत्री की कार को घर से बाहर निकालकर तलाशी ली थी। साथ ही कवासी के करीबी सुशील ओझा के चौबे कॉलोनी स्थित घर, सुकमा में लखमा के बेटे हरीश लखमा और नगर पालिका अध्यक्ष राजू साहू के घर पर भी दबिश दी थी। इस दौरान ईडी की टीम ने कई दस्तावेज जब्त किए थे। जांच में पता चला कि शराब घोटाले की कमाई के पैसे से सुकमा का कांग्रेस भवन भी बनाया गया है।
ईडी ने दावा किया है कि, शराब घोटाले में भ्रष्टाचार का पैसा कवासी लखमा को मिला है। लखमा को हर महीने 2 करोड़ रुपए मिलते थे। इस दौरान 36 महीने में लखमा को 72 करोड़ रुपए मिले। यह पैसे बेटे हरीश कवासी के घर निर्माण और सुकमा कांग्रेस भवन निर्माण में लगे। ईडी के मुताबिक कमीशन के 72 करोड़ में से 68 लाख रुपए से सुकमा में कांग्रेस भवन तैयार किया गया है। शराब घोटाले से सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ है। इसके बाद ईडी ने सुकमा में लखमा के मकान और रायपुर के बंगले को भी अटैच किया है। इसके साथ ही कांग्रेस भवन को भी अटैच किया है। कवासी लखमा 16 जनवरी 2025 से जेल में बंद हैं। ईडी का आरोप है कि, पूर्व मंत्री और मौजूदा विधायक कवासी लखमा सिंडिकेट के अहम हिस्सा थे। लखमा के निर्देश पर ही सिंडिकेट काम करता था। इनसे शराब सिंडिकेट को मदद मिलती थी।
वहीं, शराब नीति बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे छत्तीसगढ़ में स्नरु-10 लाइसेंस की शुरुआत हुई। लखमा को आबकारी विभाग में हो रही गड़बडिय़ों की जानकारी थी, लेकिन उन्होंने उसे रोकने के लिए कुछ नहीं किया। शराब सिंडिकेट के लोगों की जेबों में 3200 करोड़ रुपए से अधिक की अवैध कमाई भरी गई है। अटैचमेंट का मतलब है कि संपत्ति को अस्थायी रूप से जब्त कर लिया जाता है, लेकिन इसका इस्तेमाल जारी रहता है। आप उस संपत्ति का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन आप इसे बेच नहीं सकते या किसी और को ट्रांसफर नहीं कर सकते। अटैचमेंट एक कानूनी प्रक्रिया है, जो आमतौर पर तब होती है, जब कोई व्यक्ति किसी कानूनी मामले में ऋ ण चुकाने में विफल रहता है। किसी कांड में भ्रष्टाचार से कमाई गई प्रॉपर्टी होने का अंदेशा हो तो फैसला आने तक संपत्ति को सुरक्षित रखना जरूरी होता है, इसलिए ये कार्रवाई की जाती है। छत्तीसगढ़ शराब घोटाला मामले में ईडी जांच कर रही है। ईडी ने एसीबी में एफआईआर दर्ज कराई है। दर्ज एफआईआर में 2 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के घोटाले की बात कही गई है। ईडी ने अपनी जांच में पाया कि तत्कालीन भूपेश सरकार के कार्यकाल में आईएएस अफसर अनिल टुटेजा, आबकारी विभाग के एमडी एपी त्रिपाठी और कारोबारी अनवर ढेबर के सिंडिकेट के जरिए घोटाले को अंजाम दिया गया था।
2019 में डिस्टलरी संचालकों से प्रति पेटी 75 रुपए और बाद के सालों में 100 रुपए कमीशन लिया जाता था। कमीशन को देने में डिस्टलरी संचालकों को नुकसान ना हो, इसलिए नए टेंडर में शराब की कीमतों को बढ़ाया गया। साथ ही फर्म में सामान खरीदी करने के लिए ओवर बिलिंग करने की राहत दी गई। डिस्टलरी मालिक से ज्यादा शराब बनवाई। नकली होलोग्राम लगाकर सरकारी दुकानों से बिक्री करवाई गई। नकली होलोग्राम मिलने में आसानी हो, इसलिए एपी त्रिपाठी के माध्यम से होलोग्राम सप्लायर विधु गुप्ता को तैयार किया गया। होलोग्राम के साथ ही शराब की खाली बोतल की जरूरत थी। खाली बोतल डिस्टलरी पहुंचाने की जिम्मेदारी अरविंद सिंह और उसके भतीजे अमित सिंह को दी गई। खाली बोतल पहुंचाने के अलावा अरविंद सिंह और अमित सिंह को नकली होलोग्राम वाली शराब के परिवहन की जिम्मेदारी भी मिली। सिंडिकेट में दुकान में काम करने वाले और आबकारी अधिकारियों को शामिल करने की जिम्मेदारी एपी त्रिपाठी को सिंडिकेट के कोर ग्रुप के सदस्यों ने दी। शराब बेचने के लिए प्रदेश के 15 जिलों को चुना गया। शराब खपाने का रिकॉर्ड सरकारी कागजों में ना चढ़ाने की नसीहत दुकान संचालकों को दी गई। डुप्लीकेट होलोग्राम वाली शराब बिना शुल्क अदा किए दुकानों तक पहुंचाई गई। इसकी एमआरपी सिंडिकेट के सदस्यों ने शुरुआत में प्रति पेटी 2880 रुपए रखी थी। इनकी खपत शुरू हुई, तो सिंडिकेट के सदस्यों ने इसकी कीमत 3840 रुपए कर दी। डिस्टलरी मालिकों को शराब सप्लाई करने पर शुरुआत में प्रति पेटी 560 रुपए दिया जाता था, जो बाद में 600 रुपए कर दिया गया था। एसीबी को जांच के दौरान साक्ष्य मिला है कि सिंडिकेट के सदस्यों ने दुकान कर्मचारियों और आबकारी अधिकारियों की मिलीभगत से 40 लाख पेटी से अधिकारी शराब बेची है। देशी शराब को सीएसएमसीएल के दुकानों से बिक्री करने के लिए डिस्टलरीज के सप्लाई एरिया को सिंडिकेट ने 8 जोन में विभाजित किया। इन 8 जोन में हर डिस्टलरी का जोन निर्धारित होता था। 2019 में सिंडिकेट की ओर से टेंडर में नई सप्लाई जोन का निर्धारण प्रतिवर्ष कमीशन के आधार पर किया जाने लगा। एपी त्रिपाठी ने सिंडिकेट को शराब बिक्री का जोन अनुसार विश्लेषण मुहैया कराया था, ताकि क्षेत्र को कम-ज्यादा करके पैसा वसूल किया जा सके। इस प्रक्रिया को करके सिंडिकेट डिस्टलरी से कमीशन लेने लगा। ईओडब्लू के अधिकारियों को जांच के दौरान साक्ष्य मिले हैं कि तीन वित्तीय वर्ष में देशी शराब की सप्लाई के लिए डिस्टलरीज ने 52 करोड़ रुपए पार्ट-सी के तौर पर सिंडिकेट को दिया है।
कांग्रेस दफ्तर पहुंची ईडी, संगठन प्रभारी मंत्री मलकीत को दी चालान की कॉपी
एजेंसी ने कहा- 68 लाख में बना सुकमा का कांग्रेस भवन, शराब-घोटाले से लखमा को 72 करोड़ मिले
