रायगढ़। विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान की तारीख जैसे-जैसे करीब आ रही है। रायगढ़ सामान्य सीट सहित जिले की अन्य सभी सीटों पर राजनीतिक सरगर्मी तेजी से बढ़ती जा रही है। जिला मुख्यालय रायगढ़ की सीट का मुकाबला दिलचस्प मोड़ की तरफ बढ़ता जा रहा है। साथ ही कांग्रेस-भाजपा में भीतरघात की आशंका भी तेजी से घर करती जा रही है। रायगढ़ विधानसभा क्षेत्र की यह सामान्य सीट दोनों ही राजनीतिक दलों के लिए प्रतिष्ठा की सीट बन गई है। रायगढ़ से भाजपा प्रत्याशी ओपी चौधरी और कांग्रेस प्रत्याशी प्रकाश नायक के जनसंपर्क कार्यक्रम में कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज जरूर दिख रही है। लेकिन अंदर ही अंदर दोनों ही राजनीतिक दलों में अलग खिचड़ी पकाने का एहसास हो रहा है। निर्दलीय प्रत्याशी के बढ़ते जनसंपर्क से इस खिचड़ी में उबाल की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। राजनीतिक के जानकारों की माने तो रायगढ़ सीट पर मुकाबला बेहद दिलचस्प मोड़ की तरफ पहुंच सकता है। पूव आईएएस और भाजपा प्रत्याशी ओपी चौधरी के समर्थन में पार्टी के भीतर मची अंदरूनी कलह एक बड़ी बाधा बन सकती है, या भाजपा के लिए नुकसानदायक हो सकता है। जिस तरह भाजपा से बगावत कर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरी गोपिका गुप्ता को भीतर ही भीतर सपोर्ट करने में पार्टी के ही कुछ लोगों पर उंगलियां उठनी शुरू हो गई है। ठीक उसी तरह एक वर्ग विशेष अपनी राजनीतिक जमीन खिसकने की आशंका से भाजपा प्रत्याशी के साथ तो दिख रहा है। लेकिन वोट के बंटवारे की बड़ी गुंजाइश के संकेत दे रहा है। भाजपा की ही तरह कांग्रेस में भी प्रकाश नायक की राह पर अड़चन खड़ा करने की रणनीति पार्टी के ही कुछ लोग बना रहे हैं। जिसका नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है।
बताया जाता है कि कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे शंकर लाल अग्रवाल प्रचार-प्रसार में बेहद उत्साहित नजर आ रहे हैं। राजनीतिक सूत्रों की माने तो शंकर लाल अग्रवाल को समाज से पूरा सपोर्ट मिलने की उम्मीद है। इसके अलावा सरिया, पुसौर क्षेत्र में भाजपा-कांग्रेस के एक बड़े वोट बैंक पर इस निर्दलीय प्रत्याशी ने सेंध मारी करने की पूरी रणनीति तैयार कर ली है। इस तरह इस निर्दलीय प्रत्याशी से कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही नुकसान उठाना पड़ सकता है। पिछले तीन-चार दिनों से जिस तरह नए समीकरण बनते जा रहे हैं उसे लगता है कि दोनों ही बड़े राजनीतिक दलों के मंसूबों पर पानी फिर सकता है। हालांकि दोनों ही राजनीतिक दलों में सब कुछ ठीक होने का दावा किया जा रहा है। लेकिन भीतरघात की बढ़ती खाई और गहरी हो सकती है। भाजपा-कांग्रेस आने वाले दिनों में अपने ही दल में पक रही अलग खिचड़ी की दाल गलने का इंतजार करती है। यह समय रहते इसकी आग को बुझाने में कामयाब होती है। यह तो आने वाला दिनों में ही पता चल पाएगा।
लैलंूगा क्षेत्र में भी कशमकश!
रायगढ़ सीट की तरह लैलूंगा विधानसभा सीट बीजेपी कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकती है। हालांकि यहां सीधे-सीधे भाजपा-कांग्रेस में टक्कर की स्थिति है। लेकिन यहां दोनों दलों के भीतर चल रहे टकराव से किसका नुकसान होगा यह कह पाना फिलहाल मुश्किल है। लैलूंगा सीट पर कांग्रेस फिर से कब्जा जमाने की रणनीति पर काम करने का दावा करती है। वहीं भाजपा अपने इस खोए हुए सीट को हथियाने की जुगत में जुटी है। लेकिन दोनों के समीकरण को दोनों पार्टियों के भीतर मचे द्वंद से खतरा हो सकता है। राजनीति के जानकारों की माने तो लैलूंगा सीट को दोनों ही दलों के संगठन के नेता प्रत्याशियों के भरोसे छोडक़र परिणाम का इंतजार करते नजर आ रहे हैं। इससे दोनों ही दलों में भितरघात की ऐसी आशंका बढ़ चली है, जिसका फिलहाल उपचार नजर नहीं आता।
2018 की तरह भितरघात की आशंका
भाजपा का एक धड़ा इस चुनाव में भी 2018 के तरह भितरघात के आशंका से आशंकित नजर आ रहा है। 2018 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रोशन लाल अग्रवाल की घेराबंदी का भाजपा के विजय रथ को रोकने का जो प्रयास हुआ था वह सामने है। उसे याद कर पार्टी का एक वर्ग इसकी पुनरावृत्ति की तरफ बढ़ता जा रहा है। 2018 के अपराजय का मलाल अब पार्टी के उन समर्थकों को है। उस अंगीठी की राख अभी भी ठंडी नहीं पड़ी है। जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ सकता है। राजनीति के जानकारों की माने तो रोशन लाल अग्रवाल को याद कर 2023 केे इस चुनाव में उनकी अप्रत्यक्ष मौजूदगी का एहसास तो कराया जा रहा है। दूसरी तरफ एक वर्ग विशेष के निर्दलीय चुनाव मैदान में होने से वोटो के बंटवारे की निश्चितता भितरघात को सामाजिक रुझान के तौर पर परिभाषित करने का अवसर भी दे रहा है। इस दोहरे लाभ को लेकर भाजपा का एक धड़ा अपने भीतर छुपे दर्द को व्यक्त करने में गुरेज करता दिख रहा है।
भितरघात से रायगढ़ सीट में फंस सकता है पेज!
कांग्रेस-भाजपा में अंदर-अंदर पक रही खिचड़ी, कहीं राजनीतिक बदले की तैयारी तो नहीं?
