महिलाओं के चाल चरित्र पर बड़ी सारी किताबें लिखी गई हैं बड़े जतन से उनके हाव भाव को पढ़ा जाता है और उनपर फिर एक ठप्पा लगाया जाता है कि अमुक महिला अच्छी है या बुरी,इस टैग का ढांचा सदैव से पुरुष प्रधान समाज बनाता आया है और जिस महिला पर जैसा ठप्पा लगा दिया गया उसका पुरा जीवन उसी ठप्पे के इर्द गिर्द बीत जाता है,केवल कुछ ही महिलाएं इस ठप्पे के मकडजाल को तोड़ कर इतिहास रचती हैं,पर यह प्रतिशत स्पष्ट नहीं कभी कम कभी ज्यादा,और सदैव यह घर की चार दीवारी से देश की सर्वोच्च इमारतों तक बहस और चिंतन का विषय रहा है।अब इसी बात को ले कर आते हैं हम महिला आरक्षण बिल पर जिसका मुद्दा आज से नहीं बल्कि वर्षो से संसद में लंबित रहा है,और हर बार इसे किनारे पर खड़े रह कर इंतज़ार करने को बाध्य रहना पड़ा है,आइये जानते हैं 19 सितम्बर को आखिर नये संसद भवन में नारी शक्ति वंदन अधिनियम यानी महिला आरक्षण पर जो चर्चा हुई और बिल पास हुआ उसके मुख्य उद्देश्य क्या हैं।
आखिर क्या है महिला आरक्षण बिल?
पूर्व में कई बार महिला आरक्षण विधेयक कानून बनते बनते रह गया पर इस बार मोदी सरकार नें आखिर कार सफलता अर्जित की और लोक सभा में इस बिल को पारित किया गया,विपक्ष भी साथ था क्योकि महिलाओं के आरक्षण की माँग देश की आधी आबादी के अधिकारों के हित में है। आज भले ही देश में महिलाओं नें खुद को हर आयाम पर बेहतर साबित किया है पर फिर भी जब आंकड़े दोनों सदनों के आते हैं तो देश अभी भी काफी पीछे है।हमारी लोकसभा में आज के आकड़ों के अनुसार केवल 15 प्रतिशत सदस्य महिलाएं हैं और इन आकड़ों को 33 प्रतिशत करने की माँग ही महिला आरक्षण बिल या नारी शक्ति वंदन अधिनियम कहला रहा है।इस बिल के अनुसार राज्य सभा व लोक सभा में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई जाएगी और महिलाओं को राज्य व केंद्र की राजनीति में सीधा जुडऩे व देश हित पर बात करने व कानून बनानने में सक्षम अधिकार दिया जाना सुनिश्चित किया जायेगा।
आखिर महिलाओं को आरक्षण ज़रूरी क्यों?
यूँ तो हमारे देश को आज़ाद हुए 7 दशक बीत चुके हैं पर आज भी लोक सभा व राज्य सभा में महिलाओं की संख्या बहुत ही कम है,यदि आंकड़ों को देखा जाये तो लोक सभा में 543 सीटों पर केवल 78 महिला सांसद हैं जो कि कुल संख्या का केवल 15 प्रतिशत हिस्सा है,ठीक इसी तरह राज्य सभा के कुल 224 में 11 प्रतिशत ही महिलायें हैं जो कि बहुत कम है।यदि इस बिल की ऊपरी परत को समझें तो देश के वोटरों की आधी आबादी महिलाओं की है पर जब बात आती है संविधानिक पदों की तो वहाँ केवल 15 और 11 प्रतिशत आंकड़े है,जिसे बदलना देश हित में अतिआवश्यक था।भारत नारी सशक्तिकरण को अपना आधार मानता आया है और अब इस बात को धरातल पर उतरने का प्रयास किया जा रहा है जो की स्वागतयोग्य है।
इस बिल के आने से क्या होगा?
किसी भी बिल के आने के बाद के परिणाम तुरंत नहीं स्पस्ट होते परन्तु महिला आरक्षण बिल के आने के बाद के बदलाव बहुत ही सकारात्मक होंगे और जल्द ही दिखने वाले होंगे क्योकि साक्षरता से ले कर अंतरिक्ष तक महिलाओं नें अपनी कार्यशैली का लोहा मनवाया है और यदि महिलाएं सीधे देश की राजनीति से जुड़ेंगी तो देश हित में कई अच्छे फैसले लिए जाएंगे।साथ ही इस से पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं का आत्मसम्मान भी बढ़ेगा व समाज में सामंजस्य व बेहतरी होगी।एक नारी जितनी बारीकी से परिवार और नौकरी में सामंजस्य बनाती है यह तकनीक अब घर से निकल कर देश के सर्वोच्च स्थानों तक पहुँचेगी और भारत को नई तकनिकों ने सदैव ऊंचा उठाया है यह हमारा इतिहास रहा है साथ ही एक साधारण महिला जब एक उच्च पद पर बैठेगी तब जन साधारण की समस्याओं व महिलाओं की समस्याओं को एक नई दृष्टि से समझ सकेगी व उसके लिए आवाज़ उठा सकेगी जिसकी देश को सदैव ज़रूरत रही है।
मेरी कलम की नजऱ से
कई बार लोगों को कहते सुना है कि राजनीति अच्छी नहीं और महिलाओं के लिए तो बिल्कुल भी नहीं,एक साधारण परिवार की महिला का गौरव और संस्कार राजनीति को पूर्ण रूप से कभी अपना नही पाये और यदि कहीं अपनाये तो उस महिला पर छीटाकशी व अभद्र टिप्पणी ज़रूर की जाती है,एक ऐसा माहौल बना दिया जाता है जिसके कारण उस समाज में महिला होना और राजनीति दोनों नदी के दो अलग अलग छोर लगने लगें।पर क्या आप सभी नें एक बात पर गौर किया कि आखिर ऐसा माहौल बनाया किसने?आखिर राजनीति को गन्दा किया किसने?और इसे महिलाओं से दूर रखा क्यों गया?मेरी समझ से 15 और 11 प्रतिशत वालों का हाथ तो कतई नहीं बाकी इशारा साफ और स्पष्ट है।ईश्वर से प्रार्थना करूंगी कि इस महिला आरक्षण बिल का एक पहलू यह भी हो कि इस बिल लोगों की इस दृष्टि की मलीनता ज़रूर दूर होगी।
कविता शर्मा
घरघोड़ा