रायगढ़। अघोरेश्वर भगवान राम के अवतरण दिवस पर अघोर गुरु पीठ ट्रस्ट बनोरा के पीठाधीश्वर एवम उनके शिष्य पूज्य पाद प्रियदर्शी ने सामाजिक बुराइयों के परित्याग का आह्वान किया। आशीर्वचन के दौरान उन्होने महापुरुषों के सानिध्य एवं विचारो को आत्मसात किए जाने को ही जीवन का असली सत्संग निरूपित किया। अघोरेश्वर भगवान राम के जीवन से जुड़े ढेरो संस्मरणों पर प्रकाश डालते हुए बाबा प्रियदर्शी ने कहा बहुत सी भ्रांतियों की वजह से औघड़ पंथ को लेकर असमंजस की स्थिति बनी रही। शमशान साधना की वजह से अघोर पंथियों को समाज हेय दृष्टि से देखता रहा यही वजह है कि लंबे समय तक इस पंथ का सामाजिक लाभ दृष्टिगोचर नहीं हुआ। अघोरेश्वर ने सुधार की दिशा मे परंपराओ से हटकर बड़े कदम उठाए और शमशान से समाज की ओर अवधारणा को स्थापित किया। शमशान की साधना को आश्रमों की सेवा साधना में तब्दील करने वाले अघोरेश्वर इस बात को भली भांति समझते थे कि व्यक्ति शरीर के रूप में दिखने वाली गतिविधियों को ही असली जीवन समझने की भूल कर बैठा है इसलिए वह अपनी आत्म शक्तियों से अनजान हो गया। इस महापुरुष को बाल्यकाल में ही आत्म शक्ति का बोध हो गया। बाल्यकाल में ही घर का परित्याग करने वाले अघोरश्वर ने इस बात को समझा कि शरीर तो नश्वर है और सांसारिक मोह माया का बंधन ही मोक्ष के मार्ग में बाधक है।जन्म के साथ शरीर के मृत्यु तक पहुंचने की यात्रा शुरू हो जाती है। लेकिन आत्मा की यात्रा जन्म और मृत्यु से परे होती है। जीवन में अर्जित आत्मज्ञान व आत्मबोध से अघोरेश्वर ने समाज को आत्मशक्ति से परिचय कराया। जीवन के इस भवसागर को पार करने की सही विधि उन्होंने बताई। मोह से दूर रहने के लिए संत महात्माओ के दर्शन, महात्माओ का सान्निध्य, एवं महापुरुषों के विचारों को आत्मसात किए जाने की प्रक्रिया को ही जीवन का असली सत्संग बताया। पीडि़त मानव की सेवा को सबसे बड़ा धर्म बताते हुए अघोरेश्वर ने 1961 में सर्वेश्वरी की स्थापना की एवम इसके जरिए उस दौर की लाईलाज समझे जाने वाली कृष्ठ रोग बिमारी की दवा इजाद की। कृष्ठ रोगियो को पापी बताकर उन्हे समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता था। अघोरेश्वर ने समाज से तिरस्कृत पीडि़त उपेक्षित ऐसे कृष्ठ रोगियों को गले से लगाते हुए अपने आश्रम में न केवल पनाह दी बल्कि उनकी सेवा के जरिए पीडि़त मानव की सेवा का अभूतपूर्व कीर्तिमान स्थापित किया। उनकी इस सेवा की पूरी विश्व ने सराहना की ग्रीनिज वर्ल्ड में इसे शामिल किया गया। कुटिल विचार वाले मनुष्यो को उन्होंने कुष्ठ रोगी बताया। नशाखोरी की प्रवृति को जीवन को खोखला करने का कारण बताते हुए अघोरेश्वर ने जीवन जीने का सरल, सहज मार्ग बताया।
सेवा कार्यों के विस्तार हेतु आश्रमों की संख्या धीरे धीरे बढऩे लगी। अघोर गुरु पीठ ट्रस्ट बनोरा एवम इनकी सभी शाखाएं भी पूज्य अघोरेश्वर की सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय विचारधारा का प्रवर्तक है।समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े बेबस बेसहारा लोगों के जीवन की मूलभूत आवश्यकता शिक्षा चिकित्सा के लिए ये शाखाएं निरंतर प्रयत्नशील है। न्यूनतम दर में स्कूली शिक्षा,स्वास्थ्य शिविरों के माध्यम से नि:शुल्क परामर्श उपचार प्राकृतिक आपदाओं में घरेलू उपयोग की आवश्यक सामग्री का वितरण सहित खर्चीले विवाह से मुक्ति हेतु आश्रम के विवाह नशा उन्मूलन विधवा विवाह जैसे अनेकों समाज उपयोगी कार्य कर रहा है। श्रेष्ठ विचार श्रेष्ठ चिंतन ही श्रेष्ठ कर्म का आधार है और इसके लिए नियमित अच्छे साहित्यों का अध्ययन आवश्यक है। लोढ़ा करें, बढाई हमहूँ शिव के भाई’’ का उल्लेख करते हुए पूज्य बाबा ने कहा जैसे मिर्ची को पीसने वाला पत्थर लोढ़ा शिव की मूर्ति वाला पत्थर एक ही खदान से निकलते है लेकिन एक पूजनीय हो जाता है उसी तरह ईश्वर द्वारा बनाए गए विधि के विधान सबके लिए एक ही है। त्याग,तपस्या,क्षमा,विश्वास धैर्य जैसे आत्मीय गुणों को अपनाकर सद्कर्म करने वाला मनुष्य समाज की नजर में सम्मनीय एवम पूजनीय हो जाता है वही चोरी करने वाला झूठ बोलने वाला व्यभिचारी व्यक्ति अपराधी बनकर अपमानित होता है जेल की सजाए काटता है। पूजनीय एवम अपमानित दोनो ईश्वर के विधान से निर्मित एक ही मनुष्य है लेकि कर्म और आचरण में भिन्नता की वजह से समाज दोनो के साथ अलग-अलग नजरिया रखता है। जीवन में अज्ञानता को सबसे बड़ी व्याधि बताते हुए पूज्य बाबा ने कहा मनुष्य के जीवन में मोह बंधन का सबसे बड़ा कारण है और यही मोक्ष के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है।बाबा प्रियदर्शी राम ने सोगडा आश्रम में गुरु अघोरश्वर के सानिध्य में व्यतीत किए 11-12 वर्षो का संस्मरण भी साझा किए। स्नेह पूर्वक मिली जिम्मेदारियो के साथ मिले कठोर अनुशासन के निर्वहन को तपस्या बताते हुए बाबा प्रियदर्शी राम ने किताबो की बजाय महापुरुषों के सानिध्य को ज्ञान का स्त्रोत बताया। बाबा प्रियदर्शी राम ने महापुरुष के अवतरण दिवस पर समाज से आह्वान करते हुए कहा आज यहां से सत्य बोलने का संकल्प लेकर जाए सामाजिक बुराई जुआ एवम नशीली वस्तुओं के परित्याग का संकल्प लेकर जाए असहाय पीडि़त मानव की सेवा का संकल्प लेकर जाए सही मायने में तभी मानव जीवन सार्थक होगा।
महापुरुषों के विचारो को आत्मसात करना ही जीवन का सत्संग- बाबा प्रियदर्शी राम
अघोरेश्वर के अवतरण पर समाजिक बुराइयों के परित्याग का बाबा प्रियदर्शी राम ने किया आह्वान
